देहरादून। आज खुले चैलेंज पर उक्रांद के केन्द्रीय संगठन मंत्री संजय बहुगुणा कहते हैं कि उत्तराखण्ड प्रदेश का दुर्भाग्य ही तो है कि 20 सालों से यहां पर सिवाय श्रेय लेने के कुछ भी नहीं हुआ है। दिल्ली में उभरा एक नया दल जिसका सृजन ही अन्ना के जनांदोलन से होता है और वह दिल्ली में विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के बड़े-बड़े सूरमाओं को पटकनी देते हुए तीन बार दिल्ली सरकार बनाने की हसरतें पूरी करता है और वहीं से वे खुद पर ईमानदारी का तमगा हासिल कर सभी राज्यों में पैर पसारने की कोशिश में लग जाते हैं लेकिन अभी तक सिवाय दिल्ली के वे एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाए। हाँ इतना जरुर है कि हसरतें पूरी करने में कोई कोर कसर भी नहीं छोड़ते। उनकी ही सरकार के उप मुख्यमंत्री उत्तराखंड आते हैं और सरकार की नाकामी पर उन्हें खुला चैलेंज देकर चले जाते हैं आखिर देवभूमि को क्या यही दिन देखने बाकि रह गए हैं कि कोई बाहरी प्रदेश से हमारी ही भूमि पर आकर हमें चैलेंज कर चले जाए। जो इस बात को बताने के लिए काफी है कि सरकार नाम की कोई चीज होती तो उन्हें उनकी बात का तभी जबाव दे दिया जाता। उत्तराखंड में तो अपनी ढ़पली, अपना राग है। जिन मूल उद्देश्यों के लिए शहीदों ने शहादतें दी 20 साल गुजरने उपरांत भी उनके सपनों का उत्तराखंड शायद ही कहीं दिखाई देता हो। पहाड़ आज विरान होकर कराह रहें। शिक्षा, चिकित्सा व रोजगार की दिशा में जो काम धरातल पर होने चाहिए थे वाकई में इनमें से एक पर भी बीस सालों में सही से विमर्श नहीं हो पाया नतीजतन पलायन आयोग बनाकर उस पर काम किया जाने लगा है। अब पलायन आयोग किस नतीजे पर पहुंचा कुछ कह नहीं सकते मगर जब तक सरकार शिक्षा, चिकित्सा व रोजगार पर काम नहीं करेगी तब तक पलायन को नहीं रोका जा सकता। अब रही बात चैलेंज की तो आखिर कैसे कोई हमें हमारे घर पर आकर चैलेंज कर सकता है कहीं न कहीं कोई तो ऐसी खामियां होंगी जिसके कारण उत्तराखंड के पांच उपलब्धियां गिनवाने का खुला चैलेंज देकर दिल्ली सरकार के उप मुख्यमंत्री सरकार के प्रवक्ता के निमंत्रण पर देहरादून पहुंच जाते हैं। सरकार के प्रवक्ता ने आज उनसे संवाद करने के बजाय अपनी नाकामी पर पर्दा डाल समूचे उत्तराखंडित को अपमानित करने का काम किया है। उत्तराखंड और उत्तराखंडियत उस पहाड़ की तरह है जो स्वाभिमानी होता है हमें अपने पहाड़ो से बहुत कुछ सीखने की जरुरत है अगर सरकार ने कुछ काम किए होते तो तभी वह उन पर कुछ बहस करते खाली ढोल पीटने से विकास को महिमामंडित नहीं किया जा सकता है। उसके लिए धरातल पर काम करने की जरुरत है। संजय बहुगुणा कहते हैं उक्रांद ने जिस सपने को लेकर आंदोलन को धार दी भाजपा- कांग्रेस ने तो सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते जमीन तराश कर उसको हाईकमान के ईशारों पर चलाने का काम किया। अगर उत्तराखंडियों ने वक्त रहते उक्रांद को परखा होता तो शायद आज उस कसौटी पर खरे उतरने की बात की जाती जिसे एक उपमुख्यमंत्री चैलेंज देकर चले जाते हैं। जिस नैतिक जिम्मेदारी का निर्वहन मुख्यमंत्री को करना चाहिए था वे उससे बचते जा रहे हैं। प्रदेश भाजपा के मुख्य प्रवक्ता मुन्ना सिंह चौहान अब आप नेता की बातों का जबाव दे रहे हैं। वे कह रहे हैं कि आम आदमी पार्टी के नेता उत्तराखंड केवल सैर सपाटे के लिए आते हैं। भला ये कहां तक तार्किक है। उत्तराखंड सरकार के मंत्रियों और भाजपा नेताओं के पास ऐसे सैर सपाटा कर अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने वाले नेताओं के लिए समय नहीं है और ना ही उनकी किसी बात को वे गंभीरता से लेते हैं। अब जब जबाव देते नहीं बन रहा है तो ऐसे बेतुके सवालों से मीडिया को बहलाने का काम किया जा रहा है। आज भी जनता के पास सही निर्णय लेने का समय है ताकि हमें ये दिन न देखने पड़ जाएं कि कोई भी मुंह उठाकर हमें गुर्राना शुरु कर दे और हम उसका जबाव दिए बिना ही खुद की पीठ खुद ही थपथपाने का काम करें। अगर आज विकास की इतनी ही गंगा बही होती तो शायद एक सार्थक संदेश देकर नजीर पेश की जाती मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है जिस उपलब्धि का बखान किया जा सके। आज प्रदेशवासियों के सामने उक्रांद ही एकमात्र विकल्प है जो प्रदेश को संवारने का काम कर सकता है बाकि तो व्यवसाय के रुप में उत्तराखंड की धरती पर रिमोट से चलने वाले हैं जो सरकार भी रिमोट से चलाने की कोशिश करते हैं क्या कभी रिमोट से प्रदेश को समृद्ध बनाने का सपना देखा जा सकता है उत्तराखंड विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाला प्रदेश है यहाँ के सपने तो पहाड़ की विषम भौगोलिक परिस्थितियों को देख कर ही बुने जा सकते हैं। एअर कंडीशनर कमरों में बैठकर बाते करना आसान है धरातल पर ही प्रदेश की आर्थिकी का आंकलन किया जा सकता है। सपने बेचने वाले बहुतेरे व्यापारियों की नजर उत्तराखंड में लगी है मगर उत्तराखंड को उत्तराखंड का मूल हितैषी दल उत्तराखंड क्रांति दल ही व्यापक दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ाने का काम कर सकता है।
सपने के सौदा गरों का जबाव दे पाने में नाकाम भाजपा