14 सवालों के जबाव में युवा नेता भेजे गए जेल

 देहरादून।,  "निकलो बंद मकानो से, जंग लड़ो बेमानों से।" कुछ ऐसा ही प्रचार तंत्र से सोशल मीडिया में अपने जनसरोकारों से वास्ता रखने वाले उत्तराखंड जनएकता पार्टी के जूनियर धनै यानी कनक धनै अपने पिता पूर्व काबीना मंत्री दिनेश धनै के नक्शेकदम चल पड़े हैं। वे अपने विधानसभा क्षेत्र ऋषिकेश की जनता की जन समस्याओं की लगातार आवाज उठा रहे हैं वे सरकार की खामियों को उजागर कर उनके निराकरण पर जोर देने को विगत दो सालों से प्रयत्नरत हैं पेशे दिल्ली हाई कोर्ट में वकील हैं। राजनीतिक क्षेत्र में उनका परिचय देने की शायद ही आवश्यकता पड़े क्योंकि जिस राह पर वे चल पड़े हैं उनका परिचय खुद उनकी कार्य शैली दे रही है। वे पिछले 14 दिनों से ऋषिकेश विधानसभा क्षेत्र के नेपालीफार्म तिराहे पर 14 सवालों को लेकर धरना-प्रदर्शन कर रहे थे कल जिस अंदाज उन्होंने क्षेत्रीय जनता के साथ ऋषिकेश विधानसभा का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायक जो कि सरकार में विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं, प्रेमचंद अग्रवाल के बैराज स्थित कैंप कार्यालय कूच करने का निर्णय लिया। वह उनकी आगे की दिशा तय करता है। हजारों की तादाद में जन समर्थन के साथ 14 सवालों का जबाव मांगने आईडीपीएल बैराज स्थित सिंचाई विभाग के बंगले में उनके कैंप कार्यालय में जा धमके। इससे लगता है कि वे राजनीति में उतरने के लिए उसी राजनीतिक हथियार का सहारा ले रहें हैं जिससे अनेकों राजनेताओं ने सहारा लेकर राजनीति में पदार्पण किया है। वे एक युवा हैं और अपने क्षेत्रीय जनता को जगाने के लिए उस राह पर निकल पड़े है जो राजनीति की दिशा और दशा सुधारने के उद्देश्य से राजनीति में आने को विवश करती है। एक युवा जिसने जन संघर्ष के बूते अलख जगाने की ठानी हो तो वह जन समर्थन के सहारे ऐसा अनुप्रयोग क्यों न करे? सत्ता को जगाने का एकमात्र रास्ता ही लोकतांत्रिक व्यवस्था में धरना-प्रदर्शन और अहिंसा वादी आंदोलन होता है वरना कौन किसी की आवाज सुनने को तैयार है। हमारे लोकतंत्र की यही तो सबसे अच्छी खूबी है कि यहाँ पर संवैधानिक दायरे में रहकर हरेक नागरिक को अपनी बात रखने की आजादी है। कनक धनै भी उसी संवैधानिक व्यवस्था के दायरे में रहकर जनता की जनसमस्याओं को उठा रहे हैं। अगर 70 विधानसभाओं में हरेक उत्तराखंडी नवयुवा जनसमस्याओं की आवाज उठाकर सत्ता में बैठे जनप्रतिनिधियों से सवाल करे तो वह दिन दूर नहीं जब राजनीति में एक नया बदलाव देखने को मिलेगा। युवा देश का भविष्य है बशर्ते वह सही उद्देश्य के साथ राजनीति में पदार्पण करे। विकास के मुद्दों पर बात करे। बिना आधार के कैसे कोई राजनीतिक पदार्पण कर सकता है? जनता के हक के लिए आवाज उठाना कैसे गलत हो सकता है कनक कहते हैं कि वे 14 दिन से 14 सवालों के जबाव की प्रतीक्षा में धरने पर बैठे रहे जिसमें एक मामला मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्रान्तर्गत पड़ने वाले डोईवाला ब्लॉक में 30% कमीशन को लेकर है। जिस डोईवाला ब्लॉक की बात की जा रही है ये दोनों (डोईवाला-ऋषिकेश) विधानसभा के अंतर्गत पड़ता है।  जब 14 दिन में सरकार ने कोई जबाव नहीं दिया तो मजबूरन उन्हें अपने क्षेत्रीय विधायक के साथ ही सरकार में विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका का निर्वहन करने वाले प्रेमचंद अग्रवाल के कैंप कार्यालय कूच करने का फैसला किया। अब तो उन्होंने 15 वां सवाल एक और दाग दिया कि विधानसभा अध्यक्ष बिना किसी आवंटन के कैसे ऋषिकेश में बैराज स्थित सिंचाई विभाग के बंगले पर कैंप कार्यालय चला रहे हैं?  कुछ ऐसा ही आंदोलन सोशल मीडिया में देखनेे को मिला जो कि चमोली जिले के दूरस्थ गांव के लोग हैं वे भी सड़कों के लिए आंदोलन की राह पर निकल पड़े हैं उन्होंने भी सरकार को जगाने के लिए धरना प्रदर्शन कार्यक्रम किया है। अगर एक नवयुवा जो सरकार से किसी सवाल का जबाव चाह रहा हो तो क्या लोकतांत्रिक व्यवस्था मेंं जबाव दिए जाने के बजाय जेल भेेज कर उसकी आवाज को दबाया जाना स्वस्थ परंपरा है, सरकार चाहे किसी भी दल की क्यों न हो ऐसी परंपराओं के प्रचलन से ही सरकारें बनती और बिगड़ती हैं। हां इतना जरुर है कि जनता को भी अहिंसात्मक रास्ता अख्तियार कर अपनी बात रखनी चाहिए। सरकार से जब 14 सवालों का जबाव न मिला तो ऋषिकेश विधायक प्रेमचंद अग्रवाल के कैम्प कार्यालय का घेराव करने वाले युवा नेता कनक धनै को पुलिस ने गिरफ्तार कर सुद्धोवाला जेल भेज दिया है। जिससे उनकी पार्टी उजपा में भारी आक्रोश है। "उजपा के केंद्रीय मीडिया प्रभारी प्रताप गुसांई  के केंद्रीय मीडिया कहते हैं कि सरकार निरंकुश है यहाँ पर जो भी सरकार से उसके कार्य की पारदर्शिता पर सवाल करता है उस पर सीधे मुकदमा कायम कर दिया जाता है क्या लोकतंत्र में संवैधानिक व्यवस्था के तहत सरकार से जबाव मांगना गलत है अगर गलत है तो ये तो सीधे लोकतंत्र की हत्या है? अगर सरकारें इसी राह पर चली तो कैसे लोकतंत्र को परिभाषित किया जा सकेगा। कैसे कोई अपनी बात को शासन प्रशासन तक रखेगा। सरकार को इसके निराकरण के बजाय सवाल पूछने वालों पर ही मुकदमा कायम कर दिया जाता है। जो कि दर्शाता है कि सरकार निरंकुश हो चुकी है। ये लोकतंत्र पर विश्वास रखने के बजाय अपने फैसलों पर ज्यादा विश्वास रखते है। बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करने का खामियाजा सरकार को 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ेगा।" जिस तरीके से सरकार ने 14 सवालों के जबाव मेंं आंदोलनरत नेता और उसके समर्थन में उतरे प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर दिया है शायद ही यह किसी समस्या का हल हो पर इतना जरुर है अगर सरकार से कोई सवाल पूछता है तो लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत उसका जबाव दिया जाना भी जरुरी है क्योंकि प्रदेश में त्रिवेन्द्र सिंह रावत के नेतृत्व में जीरो टाॅलरेंस की सरकार है और अगर वाकई में जीरो टाॅलरेंस पर प्रदेश सरकार काम कर रही है तो जबाव देने में किसी तरह कोताही नहीं बरती जानी चाहिए। इससे तो बेवजह सरकार की कार्य प्रणाली पर सवाल खड़े होते हैं। जो कि सरकार के हित में ठीक नहीं है।