हरिद्वार।, डबल एमए हंसी प्रहरी का सफरनामा कुमाऊं यूनिवर्सिटी में छात्र राजनीति से शुरु होकर एक मुकाम तक पहुंचाता है और गृहस्थ जीवन में आने के बाद अचानक परिस्थितियां उन्हें हरिद्वार में आध्यात्म की तरफ लाकर बेबसी का जीवन जीने को मजबूर कर देती है। आखिर ऐसी क्या परिस्थितियां रही जिसका खामियाजा एक होनहार हंसी प्रहरी को उठाना पड़ा।
कुमाऊं यूनिवर्सिटी कभी जिस हंसी प्रहरी की वाकपटुता और प्रतिभा की कद्र करती थी छात्र राजनीति में जहाँ कभी उसे वाइस प्रेसीडेंट बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ हो। राजनीति और इंग्लिश जैसे विषयों में जिस होनहार छात्रा ने डबल एमए किया हो। कुमाऊं विश्वविद्यालय में वाद-विवाद प्रतियोगिताओं से जिसने कभी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया हो ऐसी होनहार हंसी आज जिस तरह से हरिद्वार में बेबस और लाचारी का जीवन जी रही है उसके लिए कौन जिम्मेदार है? इस पर मंथन कर उसके एवं उस जैसै अनगिनत शिक्षित बेरोजगारों के भविष्य पर चर्चा होनी वक्त की जरुरत है इन जैसी न जाने कितनी प्रतिभाएं एक प्लेटफाॅर्म न मिलने की वजह से गुमनामी का जीवन जीने को विवश हैं। शायद उसी को डिप्रेशन नाम की संज्ञा भी दी जा सकती है। उन माता पिता ने भी अपनी प्रतिभावान बेटी के उस मुकाम पर पहुंचने उपरांत कुछ बड़े ख्वाब संजोए होंगे। लेकिन एकाएक सिवाय दुःख के उनके हाथ कुछ भी न लगा और हंसी की मनोदशा आज वह नहीं है जो शायद वक्त पर रही होगी मगर जिस हौसले को उसने बरकरार रखा हुआ है वह काबिले तारीफ है वह जिस तरीके से अपनी बात को विभिन्न माध्यमों से रख रही है उससे उसकी काबिलियत का अहसास होता है आज उसके पास चुनौती अपने बच्चे के भविष्य को लेकर है वह सरकार से अगर कुछ चाह रही है तो आवास उसे मिल जाए ताकि बच्चे का भविष्य बन सके। शायद वह अब इस बात को लेकर कुछ ज्यादा ही चिंतित दिखाई दे रही है। उसके हालातों ने उसे भीख मांगने तक के लिए मजबूर किया। हरिद्वार की सड़कों, रेलवे स्टेशन, बस अड्डों और गंगा के घाटों पर उसे भीख मांगते हुए देखने पर शायद ही कोई यकीन करे कि उसका अतीत कितना सुनहरा रहा होगा। ये प्रतिभाशाली बेटी उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर विधानसभा क्षेत्र के हवालबाग ब्लॉक के अंतर्गत गोविंन्दपुर के पास रणखिला गांव से तााल्लुक रखती है। इसी गांव में पली-बढ़ी हंसी पांच भाई-बहनों में से सबसे बड़ी बेटी है। एक समय था जब वह गांव में अपने शैक्षणिक क्रिया-कलापों को लेकर तब खासा चर्चित रहती थी। उसके पिता आम व्यक्ति का जीवन यापन कर हाड़-तोड़ मेहनत कर अपने बच्चों की रोजी रोटी का गुजर बसर करते थे। उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए जी-तोड़ मेहनत की। स्कूली शिक्षा ग्राामीण परिवेश से ही पास आउट होकर हंसी ने कुमाऊं विश्वविद्यालय में दाखिला लिया तो परिजनों की उम्मीदें बेटी की प्रतिभा सेे बढ़ गई। हंसी शैक्षणिक गतिविधियों के साथ ही अन्य विधाओं में बढ़-चढ़ कर भाग लेती थी। साल 1998-99 में वह तब चर्चाओं में आई जब उसने कुमाऊं विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति में पदार्पण कर उपाध्यक्ष पद अपने नाम किया।
उनके द्वारा विभिन्न माध्यमों को दी गई जानकारीनुसार उन्होंने करीब चार साल विश्वविद्यालय में नौकरी की। नौकरी की खास वजह उनकी विश्वविद्यालय में होने वाली तमाम शैक्षणिक एवं अन्य विश्वविद्यालयी गतिविधियों में भाग लेना ही वह सबकी पहली प्राथमिकता में थी तब चाहे वह डिबेट हो या कल्चर प्रोग्राम या दूसरे अन्य कार्यक्रम, वह अन्य छात्र-छात्राओं से हटकर प्रदर्शन करती थी। तदुपरांत उन्होंने 2008 तक कई प्राइवेट जॉब भी की लेकिन 2011 के बाद हंसी की जिंदगी अचानक एक मोड़ आया। हालांकि वह इस पर अभी कुछ भी खुलकर नहीं बता पा रही है। क्योंकि वह नहीं चाहती कि उनकी वजह से उनके परिवार के अन्य सदस्यों दो भाई और बाकी परिवार के सदस्यों पर किसी किस्म का फर्क पड़े। उनके द्वारा साझा की गई जानकारी अनुसार शादी के बाद ही उसकी जिंदगी में ऐसा बदलाव आया। सोशल मीडिया में मामला उछलता देख महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास मंत्री रेखा आर्य ने महिला की सुध ली।
"हरिद्वार में बहुत मुश्किल हालातो में गुजर बसर कर रहीं मेरी विधानसभा क्षेत्र की हंसी प्रहरी से मुलाकात कर उनके दर्द को सुन साझा किया और हंसी जी को सरकार एवं महिला कल्याण विभाग द्वारा नारी निकेतन में रहने की व्यवस्था व शिशु सदन में उनके बच्चे की शिक्षा व नौकरी के लिए मैंने प्रस्ताव दिया है। जिसमे हंसी जी ने समय लेकर विचार कर अपना निर्णय बताने के लिए कहा है। उम्मीद है कि हंसी जी इस प्रस्ताव को स्वीकार कर समाज की मुख्य धारा से जुड़ेंगी। "
अवसाद से घिरी हंसी उससे बाहर निकलने की कोशिश कर रही है। वह जीवन की फिर से शुरुआत करना चाह रही है।
शादीशुदा जिंदगी के बाद ही उसके जीवन में ऐसी उथल-पुथल हुई जिसके बाद वह अवसाद में चले गई। एकाएक उसके मन में ख्याल आया कि अब उसे अध्यात्म की ओर चले जाना चाहिए और अपने बेटे को लेकर चल पड़ी हरिद्वार। उनकी मानसिक और शारीरिक स्थिति तभी बिगड़ने लगी। अब वक्त के बदलते ही उन्हें लगता है कि यदि उनका इलाज सही से हो तो उनकी जिंदगी फिर से पटरी पर लौट आद। वह दोबार से अपनी जिंदगी की शुरुआत कर सकती हैं।