टिहरी। वनाधिकार कांग्रेस के प्रणेता पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय उत्तराखंडियत के हक-हकूकों को बचाने के लिए प्रदेश भर में लंबे अर्से से कार्य कर रहे हैं। लेकिन तब वे जन जागरण अभियान के तहत वनाधिकार आंदोलन के नाम से लौ जलाए हुए थे। अब सवाल उनके राजनीतिक पार्टी से जुड़े होने को लेकर है तो अभियान वही है उसकी सार्थकता भी वही है सिर्फ और सिर्फ कुछ बदला तो वह है उसका नामकरण। अब उसे वनाधिकार कांग्रेस नाम देकर उसे जन जागरण का अभियान बनाया गया है। नई टिहरी से उनके नेतृत्व में 09 सूत्रीय माँगों को लेकर नवरात्रि के शुभारम्भ कर सुमन पार्क में धरना दिया गया और हनुमान चौक पर बिजली-पानी के बिलों की होली जलाई गई। वनाधिकार कांग्रेस के प्रणेता किशोर उपाध्याय जल, जंगल और पानी पर उत्तराखंड़ियत का पहला हक बताते हुए लंबे अर्से से इस दिशा में कार्य कर रहे हैं। जिसे वे पहले वनाधिकार आंदोलन के नाम से धार दे रहे थे लेकिन कांग्रेस के पुराने सिपहसलार होने के नाते अब इस आंदोलन को वनाधिकार कांग्रेस नाम दे दिया गया ताकि वे अपनी बात को अपने प्लेटफार्म में रहकर आसानी से आमजन के बीच पहुंचा सके। धरने में बैठे वक्ताओं ने माँग की, कि राज्य व केंद्र सरकार अविलम्ब उत्तराखंडियों को केंद्र सरकार की सेवाओं में आरक्षण दे, परिवार के एक सदस्य को पक्की सरकारी नौकरी दे, प्रतिमाह एक गैस सिलेंडर, बिजली-पानी निःशुल्क दिया जाय। जड़ी-बूटियों पर स्थानीय समुदाय का अधिकार हो, शिक्षा व स्वास्थ्य सेवायें निःशुल्क करें, एक यूनिट घर बनाने हेतु लकड़ी, बजरी व पत्थर निशुल्क दिया जाय। जंगली जानवरों द्वारा जनहानि पर ₹ 25 लाख रूपये क्षतिपूर्ति व परिवार के एक सदस्य को पक्की सरकारी नौकरी दी जाय। जंगली जानवरों द्वारा फसल के नुकसान पर प्रतिनाली ₹ 5000/- क्षतिपूर्ति दी जाय, राज्य में अविलम्ब चकबंदी की जाय। उपाध्याय ने कहा कि टिहरी के निवासियों के साथ सौतेला व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जायेगा, राज्य मर्जर के समय किये गये Customary Rights भी यहाँ के लोगों को नहीं मिल रहे हैं। टिहरी बांध से आज 1400 मेगावाट बिजली पैदा हो रही है, जिससे राज्य को लगभग 200 मेगावाट बिजली फ्री मिल रही है और बांध विस्थापितों और प्रभावितों के भारी भरकम राशियों वाले बिजली के बिल आ रहे हैं।
- नई टिहरी हनुमान चौक पर एक व्यक्ति का ₹ तीन लाख की बिल की होली जलाई गयी।
- सरकारों ने जब जल, जंगल, जमीन व पर्यावरण के कानून बनाए, उस समय गिरिजनों और अरण्यजनों के पुश्तैनी हक-हकूकों और अधिकारों को मार दिया गया।
- राज्य व केंद्र सरकार अविलम्ब उत्तराखंडियों को केंद्र सरकार की सेवाओं में आरक्षण दे, और परिवार के एक सदस्य को पक्की सरकारी नौकरी दे, प्रतिमाह एक गैस सिलेंडर, बिजली-पानी निःशुल्क दिया जाय। जड़ी-बूटियों पर स्थानीय समुदाय का अधिकार हो, शिक्षा व स्वास्थ्य सेवायें निःशुल्क करें, एक यूनिट घर बनाने हेतु लकड़ी, बजरी व पत्थर निशुल्क दिया जाय। जंगली जानवरों द्वारा जनहानि पर ₹ 25 लाख रूपये क्षतिपूर्ति व परिवार के एक सदस्य को पक्की सरकारी नौकरी दी जाय। जंगली जानवरों द्वारा फसल के नुकसान पर प्रतिनाली ₹ 5000/- क्षतिपूर्ति दी जाय, राज्य में अविलम्ब चकबंदी की जाए।
उपाध्याय कहते हैं कि पुरानी टिहरी से नई टिहरी लोगों को बसाया जरुर गया है लेकिन यहाँ पड़ने वाली ठण्ड का आंकलन शायद ही कभी सरकारों ने किया होगा मगर दुःख इस बात का है कि जब से वह नगर बसा तब से सरकारों में दो बार तो वे ही टिहरी का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। जिसमें एनडी तिवारी सरकार में तो वे सरकार का मुख्य अंग तक भी रह चुके हैं। वहीं उनसे पूर्व टिहरी का प्रतिनिधित्व करने वाले लाखीराम जोशी भी अंतरिम सरकार मंत्री रह चुके हैं और उनके बाद भी दिनेश धनै भी हरीश रावत सरकार काबीना मंत्री रह चुके है जो कि टिहरी विधान सभा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। हां इतना जरुर है कि हरीश रावत सरकार में बकौल पीसीसी चीफ होने के नाते किशोर ने सरकार से तीखे सवाल बरकरार रखे। वे कहते हैं कि हाउस टैक्स लगाने की बातें भी हवा में तैर रही हैं। धरने पर बैठे किशोर कहते हैं कि नई टिहरी निवासियों के बिजली-पानी और सीवेज टैक्स के बिल सरकार तुरन्त वापस ले। अगर कांग्रेस 2022 में पुनर्वापसी कर सरकार में आती है तो क्या गारंटी है कि उनकी मांगे सब जायज होकर टिहरी ही नहीं अपितु उत्तराखंडवासियों को इससे निजात दिला पाने में कारगर भूमिका निभाएगी। हालांकि एक उत्तराखंडी होने के नाते उनकी सारी मांगे जायज हैं बशर्ते वे अपने इस अभियान को आंदोलन की शक्ल दें। उत्तराखंड एक पहाड़ी प्रदेश है पहाड़ की मूलभूत सुविधाओं के निराकरण के उद्देश्य से एक पृथक प्रदेश बना जरुर मगर पहाड़ियत आज भी इंसाफ मांग रही है पहाड़ो का विकास कागजों में सिमट कर रह गया है। दुर्भाग्य देखिए इतनी विशालकाय झील यानी टिहरी जल विद्युत परियोजना का निर्माण देशहित में किया जरुर गया लेकिन झील क्षेत्र से सटा स्थानीय आज भी खुद को छला महसूस करता है न रोजगार है न बिजली में ही कुछ छूट है ना सरकार ने स्थानीय लोगों को उस डेम से मिलने वाले लाभांश से वहाँ के बेरोजगारों को लाभान्वित किया अगर कोई हुआ भी होगा तो वे सिर्फ चंद लोग होंगे जो सत्ता के करीब रहें होंगे। आखिर इतना बड़ा बांध बनने से टिहरी के लोग कितने लाभान्वित हुए इस विषय की गंभीरता पर भी सरकारों का ध्यानाकर्षण करवाए जाने की जरुरत है। क्षेत्रीय नौजवान इतनी विशालकाय झील जिसने न जाने कितने लोगों को आजीविका से बांधे हुआ है, के बावजूद भी स्थानीयता को रोजगार में कोई तरजीह नहीं सब बाहर के लोग रैन बसेरा बनाएंगे रोजगार की संभावनाएं तलाशने के लिए टिहरी आएंगे मगर यहां का स्थानीय अपने घर जमीन से बेघर यानी राष्ट्र को इतना समर्पण करने के बावजूद भी सरकारों के पाॅलिसी की सदैव भेंट चढ़ते चला जाएगा। वे कहते हैं कि सरकारों ने जब जल, जंगल, जमीन व पर्यावरण के कानून बनाए। उस समय गिरिजनों और अरण्यजनों के पुश्तैनी हक-हकूकों और अधिकारों को मार दिया गया। अतः इन कानूनों की पुन: समीक्षा की जानी उत्तराखंड़ियत के वजूद को जिंदा रखने जरुरत है। क्योंकि उत्तराखंड विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाला प्रदेश है। यहां आज भी न जाने कितने दूरस्थ गांव ऐसे होंगे जहां सुविधाओं का अभाव होगा। सरकारों को ऐसे ज्वलंत विषयों पर अवश्य ही चर्चा करनी चाहिए। उत्तराखंडियत को लेकर तब सवाल किशोर उपाध्याय पर भी उठेंगे अगर वे सरकार में आएंगे तो क्या वे इन सभी बिंदुओं को प्राथमिकता देंगे या कहीं सरकार में आने तक का ये शिगूफा बाकि न रह जाए।