देहरादून।, लगता है सूबाई मंत्री रेखा आर्य का अक्सर विवादों में बने रहना चोली-दामन का साथ हैं क्योंकि पहले तक उन्होंने खुद विवादों को जन्म दिया लेकिन अब लगता है कि वे विवादों का पर्याय बन चुकी हैं क्योंकि पहले तक एक अधिकारी ने उनके रवैये से नाराज होकर उनके साथ काम करने को मना किया लेकिन अब सिलसिला है कि थमने का नाम नहीं ले रहा है अब एक और आईएएस मनीषा पंवार ने उनके साथ काम करने को राजी नहीं है। आखिर ऐसी क्या वजह है जिसको लेकर ब्यूरोक्रेट्स अपने मातहत के साथ काम करने की मनाही कर रहे हैं सचिव मनीषा पंवार ने भी लिखित में रेखा आर्य के
विभाग में काम करने से मना कर दिया है।मनीषा पंवार से पहले वी षणमुगम, राधा रतूड़ी सहित आधा दर्जन से अधिक आईएएस रेखा आर्य के साथ काम करने के लिए मना कर चुके हैं। भला एक मंत्री के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि कोई अधिकारी उनके साथ जुड़ने को राजी नहीं है। ना सिर्फ उनके साथ काम करने को मना कर रहे हैं। बल्कि लिखित में देकर एक सबक छोड़ रहे है। अब देखना दिलचस्प होगा कि इस फेहरिस्त में कितने नाम और शामिल होते हैं। इसी प्रकरण पर तब पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सोशल मीडिया से अधिकारी के पक्ष में खड़े हुए और कहा कि उत्तराखंड के तेज तर्रार एवं ईमानदारी की मिसाल पेश करने वाले आईएएस षणमुगम को एक बात के लिये बधाई जरुर दी जानी चाहिये कि उन्होंने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह मंत्रिमंडल के मंत्रियों तक को सोचने को विवश कर दिया है। मंत्रिमंडल के समूह ने एक यूनियन तक बना दी है, "मंत्री बचाओ-अधिकार पाओ यूनियन"। अब इस यूनियन की सदस्यता के लिए मुख्यमंत्री से कितने लोगों का आवेदन पत्र आना बाकी रह गया। अब ब्यूरोक्रेसी को जिस परिपाठी से हांकने का प्रयास मंत्री करना चाहते हैं भला क्या सचमुच उनकी बातों से ब्यूरोक्रेसी चलाई जा सकती है। अधिकांश मंत्रीगण ब्यूरोक्रेसी पीड़ित यूनियन के सदस्य बन चुके हैं। मंत्री रेखा आर्य ने जिस तरह का आचरण ब्यूरोक्रेट्सों के साथ किया क्या वह तर्क संगत है?
खुद को विवादों से दरकिनार करते ब्यूरोक्रेट्स