चुनावी सरगर्मी से पहले रुझानों का आना

देहरादून।, 2020 में ही 2022 की सियासत को गर्माना भी एक राजनीतिक चातुर्य है। ऐसा दमखम हर किसी में नहीं हो सकता। इन बातों के क्या मायने हो सकते हैं एक मंझा राजनीतिक व्यक्ति ही इसे भली भांति समझ सकता है। राजनीतिक बयानबाजी क्या गुल खिला सकती है कुछ कहा नहीं जा सकता। कैबिनेट मंत्री डॉ0 हरक सिंह के बयान से भाजपा अब उस दिन को कोस रही होगी जिस दिन उन्होंने डॉ0 रावत को भाजपा की प्राथमिक सदस्यता दिलवाई होगी। आखिर उम्मीदों से कही बढ़कर भाजपा ने उनकी मान मनुहार बरकरार रखी लेकिन एकाएक ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने 2022 का चुनाव न लड़ने की इतनी बड़ी बात को तूल देकर सियासत ही गर्मा दी। कहीं न कहीं अंदरखाने असंतोष का पनपना तय है। लगता है उनके इस बयान ने भाजपा को सोचने को जरुर विवश किया होगा। क्योंकि अगर हरक सिंह जैसा मंझा नेता 2022 में चुनाव न लड़ने की बात कह रहा है तो उसके जरुर कोई मायने होगे। वे एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ हैं वे राजनीति में कब कौन सा पैंतरा इस्तेमाल करना है इस बात को भली भांति जानते हैं। आम आदमी पार्टी में उनके मुख्यमंत्री के सपनों की नई हसरत पूरी होने की बात जरुर तूल पकड़ रही हो लेकिन अगला विधानसभा चुनाव आम आदमी पार्टी से ही वे अपनी राजनीतिक पारी को आगे बढ़ाएंगे या क्षेत्रीय दल की जड़ों को मजबूत कर वे क्षेत्रीयता के लिए काम करेंगे। वे नई पार्टी में कब आमद दर्ज करवाते हैं ऐसा कुछ भी कहना जल्दबाजी ही होगा। क्योंकि वे जल्दबाजी में शायद ही कोई कदम उठाएंगे मगर उनकी नाराजगी भी किसी से छिपी नहीं है। विभागों में मुख्यमंत्री के दखलंदाजी से भी वे नाराज बताए जा रहे हैं।





    • वर्ष 2022 में नही लड़ूंगा चुनाव -डॉ0 हरक सिंह रावत

    • उत्तराखंड की सियासत में किसी कैबिनेट मंत्री का ये बड़ा बयान है।

    • मुख्यमंत्री का डाॅ0 रावत के विभागों में दखलंदाजी शायद इसकी बड़ी वजह हो। 




उत्तराखंड सरकार में कैबिनेट मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने आज मीडिया के सामने इस बात का ऐलान किया कि वे 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। इस बारे में उन्होंने लिखित में भी उत्तराखंड भाजपा के संगठन को भी इस बावत सूचना देे दी है। उनके इस बयान से उत्तराखंड में सियासत गर्मा गई है। उनका बयान ऐसे समय में आया है जब उनके आम आदमी पार्टी  से विधानसभा चुनाव लड़े जाने की खबरें राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई हैं। वहीं कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री ने उत्तराखंड सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष पद से भी उनकी छुट्टी कर दी थी। उन्होंने हाल ही में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से मुलाकात कर कैम्पा योजना के अंतर्गत 262 करोड़ का प्रस्ताव दिया। जिसे स्वीकार भी कर लिया गया। मुख्यमंत्री का डाॅ0 रावत के विभागों में दखलंदाजी शायद इसकी बड़ी वजह हो। उत्तराखंड की सियासत में उनके ये बयान क्या गुल खिलाते हैं ये तो भविष्य के गर्भ में है पर जिस तरह से वे अपनी बात मनवाने में कांंग्रेस भाजपा दोनों में कामयाब हुए हैंं क्या उनका ये नया पैंतरा भी कुछ काम आएगा या वाकई में वे किसी नए उधेड़ बुन में लगे हैं जो उनकी राजनीतिक हसरतें पूरी कर दे।