सरकार के मंत्री के बाद भाजपा की वरिष्ठ नेत्री कोरोना पाॅजीटिव

देहरादून। आखिर हुआ वही जिसको लेकर केदारघाटी के पंडे-पुरोहित लंबे अर्से से आशंकित थे। केदारनाथ के क्षेत्रीय विधायक मनोज रावत का कहना है कि तब वे इस बात को बार- बार कह रहे थे। सरकार के एक जिम्मेदार राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार बिना किसी जांच रिपोर्ट की प्रमाणिकता के केदारनाथ धाम पंहुचते हैं और विधान सभा सत्र से पहले हुई जांच में खबर आती है कि वे कोरोना पॉजिटिव निकल गए। वे लिखते हैं कि सरकार का कोई मंत्री पहली बार केदारपुरी में सबसे बहुत प्यार से घुला-मिला होगा। वेे कहते हैं कि सरकार इस दुलार सेे केदारनाथ में कुछ बड़ा षड्यंत्र करने वाली है, मंत्री जी का दौरा उस षडयंत्र की सफलता के पहले का शांति पाठ था। ऐसे समय में जब सरकार गाइडलाइन का हवाला देकर दूसरों को नसीहत बांटते फिर रही हो तब ऐसा प्यार बरसाना कितना हितकर है, पर अभी भी समझ सको तो समझ लो, बदरी-केदार में वही होता है जो बाबा केदार और श्री नारायण चाहते हैं।


मामला केदारनाथ जी में सरकार के मंत्री डॉ0 धन सिंह रावत के साथ ही अमले में शामिल आम और खास उस दिन कार्यक्रम में मौजूद थे। मंत्री जी सत्र से पूर्व की गई जांच में कोरोना पाॅजीटिव पाए गए मगर अब परिणाम निकलकर आने शुरु हो गए हैं जो कि कहीं से भी हितकर नहीं है जबकि सरकार की नैतिक जिम्मेदारी बनती थी कि नियमों का पालन कर देवस्थानम के महत्व को बरकरार रखना चाहिए था लेकिन सत्ता जो न कराए वह कर बैठी। अब शनै-शनै उसके दूरगामी परिणाम आने शुरु हुए हैं। मगर सवाल बरकरार है कि सरकार की गाइडलाइन खाली आमजन के लिए है या उसके दायरे में सिर्फ और सिर्फ कमजोर वर्ग ही है जिसकी कोई सुनवाई करने वाला नहीं।


सरकार के राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार डॉ0 धन सिंह रावत


         के बाद भाजपा की वरिष्ठ नेत्री एवं


    पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती कोरोना पाॅजीटिव 


    अपने ट्वीट में क्या कहती हैं पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती


    


वे यहीं नहीं रुके कहा केदारी लोग पूरे संयम के साथ नियम पालन कर रहे थे। यहां तक क्षेत्रीय वासिंदों ने अपना व्यापार, रोजी-रोटी, इज्जत और बाबा के प्रति समर्पण कोरोना के नियमों की भेंट चढ़ा दिया। पहले दिन से इस बात पर जोर दिया जा रहा था कि बदरी-केदार की परम्पराएं टूट जाएंगी अगर संक्रमण वहां तक पसरा, पर सरकार उसके मंत्री और उनकी विचारधारा के लोग भगवान को पचा चुके हैं। इनको पूरा भरोसा हो गया है कि, ईश्वर कुछ नही। राजनीति और व्यापार ही सब ठीक कर देता है। तभी तो स्थानीय लोग स्वयं का नुकसान होने के बावजूद भी यात्रा को खोलने के इच्छुक नहीं थे। परंतु सरकार न जाने क्यों यात्रा खोलना पक्षधर थी ?


  दरअसल सरकार आम यात्रियों के लिए नहीं बल्कि अति विशिष्ट लोगों के दर्शन के लिए यात्रा शुरु करवाना चाह रही थी। जो कि सीधे हेलीकॉप्टर से उतरेंगे। मगर सवाल सुरक्षा को लेकर उठता है कि आखिरकार उनकी कोरोना रिपोर्ट की जांच कौन सा सक्षम अधिकारी करेगा 'दरोगा या एसडीएम'?  अगर विधानसभा सत्र का मामला न होता तो शायद ही इस बात की गंभीरता का पता चलता और मंत्री जी के दौरे ऐसे ही ताबड़तोड़ चलते रहते। 


          बाबा को विदा करने की पहली शाम उखीमठ में भैरव पूजा भी इस साल कोरोना की गाइडलाइंस को मानते हुए , पंच गांव के 5 लोग भी नहीं पहुंचे जबकि पिछले सालों तक उस पूजा में उखीमठ और आस-पास के स्थानीय सम्मिलित होकर आशीर्वाद लेना नहीं भूलते थे। विधायक कहते हैं कि वे भी उस रात ऊखीमठ डाक बंगले में ही ठहरे थे परंतु वैश्विक महामारी की गंभीरता व विपक्ष में होने के बावजूद सरकार की गाइडलाइन का पालन करते हुए न तो भैरव पूजा में गए और  ना ही सुबह बाबा को केदारनाथ के लिए बिदा करने गए। वे कहते हैं कि अगर नियम बने हुए हैं तो जनप्रतिनिधि का पहला कर्तव्य बनता है कि वह उसका अक्षरशः पालन करें। आखिरकार वे नियमों की गाइडलाइन में बंधे रहे ताकि क्षेत्रीय लोग उसकी मर्यादा में बंधे रहें। 


            वे कहते हैं उन्होंने तब अपने दिल पर पत्थर रख निश्चय किया कि वह बाबा केदारनाथ जी की डोली को गाड़ी से ही विदा करेंगे। जबकि तब तक रुद्रप्रयाग जिले में एक भी कोरोना पाॅॅजीटिव केस नहीं था। ऐसा इतिहास में कभी नहीं हुआ कि बाबा केदारनाथ की डोली गाड़ी में गयी होगी, एक साल जब कोशिश की तो परिणाम ठीक नहीं निकलेे लोग डरे थेे,  सारे जिले की पुलिस और प्रशासन एक ही काम पर लगा था कि कोई भीड़ आकर बाबा केदारनाथ, बाबा तुंगनाथ , बाबा मदमहेश्वर की डोली को छू न ले और वह वीडियो चल न जाए। बाबाओं पर पहला हक केदारघाटी के लोगों का था, है और सदैव रहेगा पर कोरोना में वे लाचार थे। प्रशासन की मीठी दुलार-पुचकार वाली अपनी बात मनवाने के कौशल को भी लोगों ने बर्दाश्त किया। 


       जबकि केदारघाटी के लोग नियम मानने वाले हैं पर तीनों केदार बाबाओं को इस साल पुलिस और संगीनों के साये में हीी बिदा किया गया। देश और अपने लोगों को सुरक्षित रखने के लिए केदारघाटी की माताओं के जो फूल - मालाएं बाबा को चढ़ाने के लिए रखी थी वो उनके हाथों में ही मुरझा गए। केदारघाटी के लोगों ने बाबा को बिदा करने के दिन से लेकर उस दिन तक दिल पर पत्थर रखा। केदारघााटी केे लोग बाबा और केदारनाथ यात्रा के बिना जी नही सकते क्योंकि उन्होंने हमेशा यही कहा कि काम-धाम अगले साल होगा अगर सभी राजी-खुशी रहें।


           वे कहते हैं कि वे खुद समय की गंभीरता भांपते हुए केदारनाथ जी सहित किसी बड़े मंदिर के अंदर दर्शन के लिए नही गए। डर था कि कहीं वायरस के वाहक न बन जाएं और किसी एक की वजह से परंपराएं न टूटे। अपने स्थानीय देवताओं के मंदिर ही हम जाते हैं। परंतु सरकार को कुछ खास करने की जल्दी है , मंत्री यूं ही केदार नही पंहुचे । 


अब सरकार बताए कि बिना जांच रिपोर्ट के केदारनाथ जाना किस श्रेणी का अपराध है, वो भी सरकारी कार्यक्रम बना कर।


क्या कानून सिर्फ गरीबों के लिए है? 


और कब तक धर्म के नाम पर चुनाव जीते जाएंगे और हमारे धामों की प्रतिष्ठा को मलिन करते रहेंगे ? अब जब बात निकली है तो दूर तक पहुंचेगी ही पर केदारनाथ के विधायक ने जो सवाल उठाए हैं वह अगर किसी भी पार्टी की पार्टी लाइन से हटकर देखें तो एक जागरुक, जिम्मेदार प्रतिनिधि होने के नाते अपने क्षेत्र की सुरक्षा के लिहाज से बड़ा संवेदनशील विषय उन्होंने उठाया है और दो कोरोना पाॅजीटिव उस मौजूदा कार्यक्रम की उपस्थिति से निकल चुके हैं। खैर न्यू एनर्जी स्टेट परिवार ईश्वर से सभी के सकुटुंब सकुशलता की प्रार्थना भी करता है।