हरिद्वार।, जिला चिकित्सालय जैसे महकमें में स्वास्थ्य सुविधाएं बदस्तूर। पूछता है आमजन आखिर इजाफा कब तक? वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद भी अगर महकमे ने कोई सबक न लिया हो तो फिर उम्मीद करना बेईमानी होगी। क्योंकि जैसा नजारा आजकल देखने को मिल रहा है शायद इतिहास में कभी ऐसा संकट शायद ही पैदा हुआ हो। जिस महामारी को साल गुजरने को है लेकिन वैश्विक स्तर पर अभी तक इसकी कोई रोकथाम नहीं हो पाई सिवाय खुद के एहतियात बरतने के अभी तक कोई भी कारगर उपाय नहीं ढूंढा जा सका है। ऐसे समय में कम से कम स्वास्थ्य महकमें को तो सबक ले लेना चाहिए कि कैसे इन विपरीत परिस्थितियों में मरीजों को लाभ पहुंचाया जा सके। हरिद्वार यानी हरि का द्वार जो मैदानी भू भाग ही नहीं बल्कि उत्तराखंड का सबसे बड़ा जिला होने के साथ ही एक आध्यात्मिक नगरी है। यहीं से देवभूमि आगमन किया जाता है। कम से कम जनसंख्या घनत्व के हिसाब से तो यहाँ पर एक उच्चस्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं का केन्द्र होना चाहिए था जो कि भारी दबाव को यहीं पर रोक सके लेकिन कहने को एक राजकीय जिला चिकित्सालय यहां पर जरुर है मगर सुविधाओं के अभाव में संचालित हो रहा है। जिसमें आधुनिकीकरण के युग न तो सिटी स्कैन है और ना ही एमआरआई जैसी बुनियादी जरुरत की मशीने हैं। लिहाजा सारा दबाव देहरादून स्थित दून मेडिकल कॉलेज एवं चिकित्सालय पर केंद्रित होता है। जिसका संज्ञान सरकार को लेना बहुत जरुरी है। हरिद्वार जनपद के एक जागरुक नागरिक होने के नाते एडवोकेट शिवम शर्मा
ने कल ही सीएम हैल्प लाइन में जिला
चिकित्सालय की स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित शिकायत मुख्यमंत्री हैल्प लाइन में दर्ज की है। वे सरकार की निष्क्रियता से बड़े आहत हुए जब उन्होंने इस संवेदनशील विषय पर संबंधित विभागाध्यक्ष से वार्ता करनी चाही तो पाया कि वेबसाइट पर डाले गए जिला चिकित्सालय से जुड़े अधिकारियों के सभी नंबर गलत थे। तदुपरांत उन्होंने मुख्य चिकित्सा अधिकारी हरिद्वार के वाट्सएप नंबर पर मैसेज कर उनके संज्ञान में भी ये बात डाली। हरिद्वार जैसै बड़े भूभाग में न जाने कितने बुद्धिजीवी रहते हों लेकिन आम आदमी की सुध लेकर इस युवा ने साबित कर दिया है कि अगर आज का युवा चाहे तो क्या नहीं कर सकता बशर्ते इच्छा शक्ति होनी चाहिए वह भी सकारात्मक कार्यों के लिए ना कि नकारात्मकता के लिए। शायद उनकी इस पहल से कोई उम्मीद जगे इससे पूर्व इन्होंने अस्थाई राजधानी देहरादून के दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय में 24 फरवरी 2019 से बंद पड़ी मशीन का संज्ञान लिया और 10 फरवरी 2020 को
सीएम हैल्प लाइन में सीटी स्कैन मशीन न होने से असुविधा की शिकायत दर्ज की। आखिरकार उनका प्रयास फलीभूत हुआ और तकरीबन 17 माह से असुविधाओं के बाद तकरीबन 6 करोड़ लागत से सिर्फ 10 सेकंड का समय लेने वाली हाईटेक सुविधाओं से लेस मशीन कोरोना काल में वरदान साबित हुई।
जिला चिकित्सालय की स्वास्थ्य सुविधाओं में इजाफा कब तक