श्रीनगर(गढ़वाल)।, माजरा ऋषिकेश और श्रीनगर के बीच तोता घाटी NH-58 के एक जनहित के मुद्दे को लेकर है जो विगत कई महीनों से बंद पड़ा हुआ है। जिसको लेकर पूर्व जिला पंचायत सदस्य लखपत भंडारी धरना भी दे चुके हैं और 7 सितंबर 2020 तक यदि राष्ट्रीय राजमार्ग न खुला तो वे 8 सितंबर 2020 को आत्मदाह या जल समाधि लेने के लिए एक ज्ञापन एनएच श्रीनगर गढ़वाल व जिलाधिकारी गढ़वाल व जिलाधिकारी टिहरी गढ़वाल को प्रेषित कर चुके हैं। उनके सोशल मीडिया में शेयर की गई जानकारी के अनुसार इस संदर्भ में उन्हें एक पत्र भी प्राप्त हुआ जिसमें अभी तक एनएच और ठेकेदार की अकर्मण्यता साफ झलकती है वे कहतेे हैं उनसे यह उम्मीद की जाती है कि वे इस प्रकार का कोई भी कदम नहीं उठाएंगे। उनके प्रशंसकों ने उनके फेसबुक वीडियो का संज्ञान लेकर उन्हें ऐसा न करने की सलाह तक दी है वे कहते हैं यदि आजादी के दीवाने भारत को गोरों से आजाद करवााने के लिए अपना बलिदान न देते तो आज देश गुलाम ही होता। जनहित के मुद्दों में पार्टी विचार धारा से उठकर उनकी ये नायाब पहल है। यदि उत्तराखंड आंदोलनकारी आंदोलन के दौरान शहीद न हुए होते तो क्या आज उत्तराखंड राज्य की प्राप्ति हुई होती। आज वक्त की जरुरत है चरमराई व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए किसी को तो पहल करनी ही होगी। इसी का वे निर्वहन कर रहे हैं जो कि जनहित का मुद्दा हैै 'श्रीनगर से ऋषिकेश' के बीच तोता घाटी विभाग द्वारा बिना सरकारी अनुमति के और बिना किसी पूर्व सूचना के ठेकेदार की अकर्मण्यता वजह से कई महीनों से बंद पड़ा हुआ है। किसी ना किसी को तो इस मुद्दे पर आवाज उठानी ही होगी आखिरकार कब तक अपने ही अधिकारों केे लिए हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे। भंडारी की साझा जानकारी के अनुसार अधिकारियों कार्यप्रणाली बेहद निराशा जनक है। राष्ट्रीय राजमार्ग का नाम का कार्यालय श्रीनगर में है लेकिन अधिकाारियों की उपस्थिति देहरादून में होती है। ऐसे निष्क्रिय पड़े तंत्र से काम की उम्मीद करना बेईमानी होगी। राष्ट्रीय रााजमार्ग से आवागमन करने वाले लोग किस प्रकार परेशान हो रहे शायद ही उन्हें आमजन की परेशानी का अंदाजा हो। कोरोना संकट ने आम जनता को वैसे ही तोड़ कर रखा है ऊपर से अतिरिक्त भुगतान कर कई किमी0 लंबी यात्रा से आमजन को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। उससे न तो अधिकारियों की सेहत पर कोई फर्क पड़ता है और ना हीं ठेकेदार की। यदि सरकार में बैठे अधिकारियों ने अपनी कार्य करने की आदत को नहीं बदला और ऐसी ही ढुलमुल गति से उत्तराखंड में विकास कार्य चलते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब फिर से लोग सड़कों पर उतर एक नए आंदोलन को शक्ल देंगें। उत्तराखंड पृथक राज्य आंदोलन अधिकारियों और नेताओं की कुर्सी (ऐसोआराम) की चाह के लिए नहीं बल्कि विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले पहाड़ की मूलभूत जरुरतों को पूूरा करने के आंदोलनकारियों की शहादत देकर प्राप्त किया। लेेकिन पहाड़ के आमजन को आज भी जब उन्हीं विषम भौगोलिक परिस्थितियों सेे जूझते हुए देख रहे हैं तो फिर उसी आंदोलन और क्रांतिकारी जोश की यादें तरोताजा हो जाती हैं और खुद से ही सवाल करने लगती हैं कि आखिर ये शहादत किसके लिए दी गई। क्योंकि पहाड़ियों आज भी पहाड़ की उन्हीं समस्याओं से दो चार होना पड़ रहा है जो कभी सुदूरवर्ती उत्तर प्रदेश में रहते होना पड़ रहा था। इसलिए बेहत्तर होगा कि अगर अपने अधिकारों का पाना है तो लखपत भंडारी जैसे व्यापक सोच के साथ पार्टी विचारधारा से ऊपर उठकर अपने हितों की लड़ाई में उनका साथ जरुर देना चाहिए। क्योंकि वे अपने लिए नहीं बल्कि जनहित के अधिकारों लिए आगे आकर लड़ रहे हैं। वे कहते हैं कि मैं अपनी बात पर कायम हूं। जब तक मुझे यह नहीं बताया जाता कि सड़क खुल गई और हमने फरासु पर जो इतना भयंकर स्लाइडिंग जोन बना हुआ है उसकी हम इस प्रकार से ट्रीटमेंट कर रहे हैं जिसके लिए धन स्वीकृत हो गया यह हमने ट्रीटमेंट स्वीकृत कर दिया ताकि जिस प्रकार की घटनाएं वहां पर घट रही दुर्घटनाओं को रोका जा सके।
- NH58 पर अंतिम फैसला आर या पार ये कहना है भाजपा के ही एक कार्यकर्ता का 7 सितंबर 2020 तक यदि सड़क यातायात के लिए नहीं खुली तो 8 सितंबर 2020 को वे आत्मदाह या जलसमाधि ले लेंगे।
उन्होंने इस संदर्भ में उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी की कार्य शैली से प्रभावित होकर उन्हें भी एक पत्र भेजा। उन्होंने उस पत्र में कहा कि मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस पर जरुर कोई सकारात्मक परिणाम निकलेगा। क्योंकि अनिल बलूनी अभी तक उत्तराखंड के प्रति हरेक गंभीर विषय पर चिंता जाहिर कर तुरंत उस पर प्रतिक्रिया भी दे चुके हैं। उसी के साथ उन्होंने जिलाधिकारी टिहरी से बात हुई तो उनका कहना था कि सड़क बन्द करने की कोई भी अनुमति सरकार
या प्रशासन के द्वारा नहीं दी गई है जिससे ठेकेदार और विभाग की मिलीभगत प्रतीत होती है। ये लोग लाखों लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। वे कहते हैं कि वे अब इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि यदि सड़क नहीं खुलती है और फरासु का स्थायी समाधान नहीं होता है तो उनके पास एक ही राह बचे हुई है कि वे श्रीनगर NH कार्यालय के सम्मुख आत्मघाती कदम उठाने के लिए विवश होंगे। क्योंकि वे अपनी बात को हरेक जिम्मेदार व्यक्तियों तक पहुंचा चुके हैं वे कहते हैं कि इसकी सम्पूर्ण जिम्मेदारी नेशनल हाईवे की होगी। इस पर आम आदमी पार्टी के प्रदेश मीडिया प्रभारी डॉ0 राकेश काला कहते हैं कि आॅल वेदर रोड़ भाजपा के ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक है जिसकी कार्य प्रणाली पर जब एक भाजपाई आरोप लगाने लगे तो समझो कहीं कोई खामी तो है। डॉ0 काला लखपत सिंह भंडारी की बातों का जिक्र करते हुए कहते हैं कि वे विगत कई महीनों से देख रहें हैं कि आॅल वेदर रोड़ का जो हाल विभाग द्वारा किया जा रहा है लगता है कि ऐसे हालात में अगले 10 साल में भी उसका तैयार हो पाना मुश्किल है। विगत 2 महीने से श्रीनगर से ऋषिकेश रोड़ को तो विभाग ने गली मोहल्ले की रोड़ बना कर रख दिया है। उनकी बातों पर तो कोई भी अधिकारी कान धरने को राजी नहीं है। एक भी अधिकारी ने इस बात को लेकर ये संजीदगी नहीं दिखाई कि अवरुद्ध सड़क मार्गों को जल्द ठीक करो और ना ही अभी तक एक भी अधिकारी इस बात की गंभीरता पर मीटिंग लेते हुए दिखाई दिया। NH श्रीनगर की सुध लेने वाला शायद ही कोई होगा। भाजपा में जब खुद उन्हीं की पार्टी का कार्यकर्ता की अनदेखी हो तो आमजन की उम्मीद करना बेईमानी होगी। भाजपा का वह कार्यकर्ता एक जनहित की मांग उठाने को प्रयासरत है मगर उसकी बातें भाजपा या उन्हीं के सानिध्य में फल-फूल रहे मठाधीशों के आगे बौनी साबित हो रही है। लखपत भंडारी सवाल उठाते हुए कहते हैं कि आखिर उन लोगों को किस बात की सजा मिल रही जो सकिनधार या कौडियाला या देवप्रयाग या उसके नजदीक हैं। जिन्हें मात्र 2 किलोमीटर चलने के लिए 100 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ रही है और तो और ये रास्ता अब ग्रीष्मकालीन राजधानी गैैरसैंण को भी जाता है। उत्तराखंड की तकरीबन 25% जनता इस सड़क मार्ग से जुड़े हुई है तो फिर ऐसा भद्दा मजाक क्यों? श्रीनगर से लेकर रुद्रप्रयाग और चमोली तक के जनप्रतिनिधि भी जनहित के सवाल पर न जाने क्यों चुप्पी साधे हुुए हैं। जब जनप्रतिनिधि ही जनहित के मुद्दों पर मौन साधे रखेेगा तो जनहित की आवाज कौन उठाएगा? क्या विभाग 1500 रुपये किराया देकर जा रहे आमजन/गरीबों के किराए को वापस करेगा या लोगों को कई घंटे तक का सफर तय करने को यूूं ही मजबूूर करेगा। वे केंद्र सरकार सेे निवेदन कर रहे हैं कि विषय की गंभीरता का संज्ञान लेने का कष्ट करें क्योंकि जिस महत्वपूर्ण विषय पर वे बात कर रहे हैं वह प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट है इस पर निकम्मे अधिकारी व ठेकेदार पलीता लगा कर सरकार को बदनाम करने मनसाहत से कार्य को अधर में लटकाए हुए हैं। जनहित में जिसका समाधान वक्त की जरुरत है। वे सरकार के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) व क्षेत्रीय विधायक डॉ धनसिंह रावत से निवेदन कर चुके हैं कि फरासु और हनुमान मंदिर पर नासूर बन रहे कार्यस्थल पर अधिकारियों को बुला कर उसका समाधान निकलवाने का कष्ट करें। यदि समय रहते ऐसा न किया गया तो आगे चलकर ये और विकराल रुप धारण कर सकता है।अब सरकार जनहित की बात उठाने वाले अपने कार्यकर्ता की बातों पर कितना कान धरती है ये देखना बाकी है।