विकास के सफर का उत्तराखंड में एक नया अनुप्रयोग

देहरादून। उत्तराखंड की सत्ता में दोनों ही राष्ट्रीय दलों की भागीदारी बराबर की रही है इसलिए कोई एक इसके लिए जिम्मेदार नहीं है। भाजपा जब से केंद्र की सत्ता में आई है तभी से देश के अधिकांश प्रदेशों में नए अनुप्रयोग देखने को मिले हैं। यह परिपाटी कोई नई नहीं है अक्सर केंद्र की सत्ता में जो भी दल काबिज रहा उसने तब-तब ऐसे अनुप्रयोग किए। आज स्थिति ये है कि भाजपा देश के अधिकांश प्रदेशों की सत्ता में काबिज है और कांग्रेस हाशिए पर है। साल 2016 में उत्तराखंड कांग्रेस का सत्ता में बने रहने को लेकर नूराकुश्ती किसी से छिपी नहीं है। तब विजय बहुगुणा ने मुख्यमंत्री पद से हटते ही खुद के लिए भाजपा में ठौर तलाशा वे 10 विधायकों के साथ भाजपा का दामन थाम चुके थे। कांग्रेस कुछ नया चमत्कार करने में असफल रही तब इसका खामियाजा 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को उठाना पड़ा। जिस उम्मीद से उत्तराखंड के आम जनमानस ने प्रचंड बहुमत देकर भाजपा को 57 सीटों से मोदीमय किया और कांग्रेस 11 सीटों पर सिमट कर रह गई। भाजपा की उस अप्रत्याशित जीत से एक उम्मीद जरुर जगी मगर उस जनमत पर भाजपा शायद ही खरे उतरी हो। क्योंकि उत्तराखंड राज्य का अधिकांश यानी 70 प्रतिशत भूभाग पहाड़ी है बाकि मैदानी। विकास की अगर बात करें तो 70 प्रतिशत भूभाग के तकरीबन 1702 पहाड़ी गांव आज 20 साल बाद भी वीरान हैं और पौने पांच सौ गांवों में तकरीबन पचास फीसदी पलायन हो चुका है। सरकारें जो भी आई सभी ने इन बातों को कहने में बड़ी हिम्मत जुटाई कि पलायन हो रहा है किसी ने पलायन के मसले पर दकियानूसी नहीं की मगर नतीजा सभी के सामने है। कोरोना काल से सरकार को उम्मीद जगी मगर प्रवासी उत्तराखंडी आज जब विषम परिस्थितियों से जूझ रहा है तो वह फिर से उसी ठौर को तलाशते हुए एक उम्मीद मन में जगाये हुए है कि काश !, फिर से स्थिति सामान्य हो और वह अपनी रोजी रोटी के लिए घर से निकले। आखिर उसके जिम्मेदार दोनों ही दल हैं। विकास अगर कहीं हुआ है तो मैदानी भू भागों का। अलग राज्य की नींव ही 70 प्रतिशत भूभाग वाले पहाड़ को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए पड़ी थी। क्योंकि उनकी सुनवाई उस विशाल प्रदेश में आसानी से नहीं हो पाती थी। आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रभारी डॉ0 राकेश काला का कहना है कि उत्तराखंड का अवाम दोनों ही राष्ट्रीय दलों की रीति-नीति से अब ऊब चुका है। वह प्रदेश में तीसरे विकल्प की तलाश में है। वह आम आदमी पार्टी के रुप में जनता के समक्ष है। डाॅ0 काला बताते हैं कि आम आदमी पार्टी ने के राष्ट्रीय संयोजक/ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसका अध्ययन डेढ़ महीने पूर्व ही उत्तराखंड में एक सर्वे करवाकर किया। उसके सकारात्मक परिणामों से आम आदमी पार्टी ने उत्तराखंड को कर्मभूमि बनाने का फैसला लिया और वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि वह 2022 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों पर दमखम से चुनाव मैदान में उतरेगी। प्रदेश में आम आदमी पार्टी का चुनाव उसके कार्यकर्ता नहीं बल्कि जनता लड़ेगी। आम आदमी पार्टी ने जिस विकास के बूते दिल्ली में फतह की उससे साबित हो जाता है कि विकास कोरी बातों से नहीं बल्कि धरातल पर काम करने से होता है। जो दिल्ली में दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों ने लंबे समय तक रहकर नहीं कर दिखाया वह केजरीवाल सरकार ने आमजन का विश्वास हासिल कर साबित कर दिखाया। विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे मायने नहीं रखते। प्रदेश के बुनियादी मुद्दों पर विधानसभा चुनाव लड़ा जाता है। उन्हीं बुुनियादी ढांचागत विकास की नींव रखने का काम आप करने जा रही है। जिसके दूरगामी परिणाम प्रदेशों में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में देखे जा सकते हैं। जिस तरह दिल्ली में उत्तराखंडी आबादी का आप को भरपूर समर्थन हासिल हुआ, अब वही समर्थन उत्तराखंड में भी मिलने जा रहा। दिल्ली, पंजाब और गोवा के बाद उत्तराखंड तीसरा राज्य होगा जहाँ आम आदमी पार्टी दमखम के साथ चुनाव लड़ने जा रही है। आप उत्तराखंड की सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा भी करने वाली है। 


चुनावी मुद्दे जिन को आप ने उत्तराखंडियो के लिए मुफीद समझा है। 


आम आदमी पार्टी दिल्ली की तर्ज पर ही उत्तराखंड में भी नए अनुप्रयोग करने जा रही हैै। शिक्षा और स्वास्थ्य की लचर कार्य प्रणाली को ढर्रे पर लाने के लिए आमजन के बीच रखने का मन बना चुकी है। उत्तराखंड में आगामी विधान सभा चुनाव में आप दिल्ली की तर्ज पर स्कूली शिक्षा को बेहत्तर करने, मोहल्ला क्लीनिक खोलने, उत्तराखंड वैसे भी ऊर्जा प्रदेश है यहाँ पानी और बिजली तो पर्याप्त मात्रा में है उसका सदुपयोग आमजन के हितों को ध्यान में रखते हुए कैसे करना है उस पर दिल्ली से भी कारगर तरीके से पैरवी करेगी। भ्रष्टाचार मुक्त और महिला सशक्तीकरण की दिशा में कारगर रणनीति के साथ चुनाव मैदान में उतरेगी। उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी, जन आन्दोलन के सहारे चुनाव लड़ेगी। जनता को आगे खड़े कर उनकी बातों को तरजीह देगी। दिल्ली की जनता ने जिस तरह दिल्ली से दोनों राष्ट्रीय पार्टियों को दरकिनार कर विकास की राह को चुना ठीक उसी तरह उत्तराखंड में भ्रष्टाचार, कुशासन से त्रस्त जनता आम आदमी पार्टी पर भरोसा जताएगी। फिलहाल आम आदमी पार्टी किसी भी राजनीतिक दल से गठबंधन के पक्षधर नहीं है।