भराड़ीसैंण (गैरसैंण) अब उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन अधिकारिक राजधानी

अब सवाल सरकारों के आत्मावलोकन का है कि आखिर छोटे से पहाड़ी प्रदेश के निर्णय में इतनी देरी क्यों? निसंदेह त्रिवेन्द्र सरकार ने ग्रीष्मकालीन राजधानी की अधिसूचना जारी कर निर्णय लिया जरुर है मगर ये आज भी आशातीत नहीं है। हां इतना जरुर है कि कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री रहे विजय बहुगुणा ने तब सतपाल महाराज के दबाव में गैरसैंण की पहल जरुर की थी जिसे मौजूदा सरकार की इच्छा शक्ति ग्रीष्मकालीन राजधानी तक ले आई। अब सरकार ने इच्छा शक्ति दिखाई है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन  बात अगर स्थाई राजधानी को लेकर की जाती है तो सवाल अब भी बरकरार हैं कि प्रदेश की स्थाई राजधानी कहां और कब तक अस्त्तित्व में आएगी। 4  मार्च की घोषणा उपरांत कल जारी हुई अधिसूचना से संशय के बादल छंटे जरुर मगर जनभावनाओं के अनुरुप अभी भी बरकरार हैं। राजधानी गैरसैंण स्थाई राजधानी हो के लिए राज्य आंदोलन जुड़े आंदोलन कारियों का आज भी वही मत है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को बधाई देते हुए कहा कि, उन्होंने भराड़ीसैंण को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी नोटिफाई कर दिया है। मगर वे उनसे इतना जरुर जानना चाहेंंगे कि, यदि भराड़ीसैंण, गैरसैंण की ग्रीष्मकालीन राजधानी है और देहरादून अस्थाई राजधानी है, जिसको केंद्र सरकार ने राज्य बनाते वक्त अस्थाई राजधानी कहा है, तो फिर राज्य की स्थाई राजधानी कहां है?  ये बड़ा यक्ष प्रश्न है। सरकार को आत्मावलोकन कर इस पर जरुर कोई विचार करना चाहिए। वहींं मुख्यमंत्री ने 4 मार्च को अपनी की गई घोषणा को सवा करोड़ उत्तराखंडवासियों की भावनाओं का सम्मान करते हुए सरकार द्वारा 8 जून को भराड़ीसैंण (गैरसैंण) को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किए जाने की अधिसूचना जारी कर प्रसन्नता जाहिर की। अब भराड़ीसैंण अधिकारिक रुप से राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी बन गई है। भाजपा अपनी सरकार के इस निर्णायक फैसले से उत्साहित हैं उनका मत है कि आंदोलनकारियों, मातृशक्ति व शहीदों के सपनों को साकार करने की दिशा में यह मील का पत्थर साबित होगा। वे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा लिए गए इस ऐतिहासिक निर्णय के लिए उनका हृृदय से आभार व्यक्त कर प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएंं भी दे रहे हैं । वहीं अब सभी ने इसेे अपने अपने चश्मे से देखना शुरु कर दिया है सोशल मीडिया का उबाल क्या कहता है जरा जानें। भराड़ीसैंण (गैरसैण) को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी एक झुनझुना है, जनता के पैसे की बर्बादी है, प्रदेश के संसाधनों की संस्थानिक लूट है, नेताओं की आराम तलफी और पिकनिक का सालाना इंतेजामात है। एक साधन विहीन राज्य जिसके पास कर्मचारियों की तनखा देने के लिए पैसे नहीं उस प्रदेश में दो-दो राजधानी का अनावश्यक खर्च वहन करना कहां तक उचित है। खैर इस पर बेशक सभी अपनी राय रखते हों लेकिन कम से कम सरकार ने जो कहा उसे ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर इच्छाशक्ति तो दिखाई। सरकार किसी भी दल की क्यों न हो इच्छाशक्ति का अभाव नहीं होना चाहिए। लेकिन सरकारों को प्रदेशहित सर्वोपरि रखतेे हुए उसकी भौगोलिक विषमताओं के अनुरुप ही कार्ययोजना तैैयार करने की जरुरत भी है।