आमजन के स्वास्थ्य के लिए कौन फिक्रमंद ?

टिहरी। सोशल मीडिया में जब जनपद टिहरी के जिला चिकित्सालय से जुड़ा वाकया पढ़ा तो उसे पढ़ कोई भी दुखी हो सकता है जिससे जनपद टिहरी के जिला चिकित्सालय जो कि पीपीपी मोड के तहत हिमालयन अस्पताल जौलीग्रांट देहरादून को सौंपा गया है, की कार्य प्रणाली पर सवाल खड़े होते हैं। क्योंकि ये आमजन से जुड़ा मामला है। एक संसाधन विहीन व्यक्ति जब इस उम्मीद से सरकारी अस्पताल में जाता है कि वहां से उसे कुछ राहत मिलेगी लेकिन राहत तो दूर उसकी तकलीफ को और बढ़ाने का काम अस्पताल द्वारा किया जाता है मामला चंबा प्रखंड की बमुंड पट्टी के ग्राम थेलारी के मुकेश आर्य की गर्भवती पत्नी से जुड़ा है जो कि संसाधनों के अभाव में उसका उपचार शुरुआत से ही नई टिहरी के जिला चिकित्सालय में करवा रहा था एकाएक प्रसव समय नजदीक आते देख वहां के डॉ0 ने उसकी पत्नी के शरीर में एनीमिया की कमी बताकर उसे खून की जरुरत बताते हुए जिला चिकित्सालय बौराड़ी, नई टिहरी से हिमालयन अस्पताल जौलीग्रांट, देहरादून रेफर कर दिया। अब एक गरीब व्यक्ति जो संसाधनों के अभाव के चलते राहत पाने की उम्मीद से जिला चिकित्सालय बौराड़ी आया हो भला वह कहाँ से इतने संसाधन जुटाएगा कि जिससे उसका उपचार प्राईवेट के भारी भरकम खर्च से किया जा सके। ब्रिस्कस एनजीओ के सचिव दिग्विजय सिंह सजवाण बताते हैं कि किसी तरह उसने हिम्मत जुटाकर अपनी पत्नी को एंबुलेंस में हिमालयन अस्पताल जौलीग्रांट देहरादून ले गया। जहां उनकी भारी भरकम फीस से ही वह घबरा गया होगा फिर वहां पर उसे बताया गया कि खून देने के लिए अन्य व्यक्तियों की जरुरत पड़ेगी तो उसने अपने घर से अपने भाई को बुलाया लेकिन जब उसे वहां से भी कोई संतोषजनक परिणाम नहीं मिला तो 6000 रुपये में एक गाड़ी बुक कर अपनी पत्नी के साथ घर आ पहुंचा। जब फिर उसकी पत्नी को दिक्कत महसूस हुई तो उसने चंबा स्थित चैरिटेबल क्रिश्चियन(मसीही) अस्पताल में अपनी जीवनसाथी को भर्ती किया जिन्होंने मुकेश को एक अनुमान डिलीवरी करवाने का खर्चा 40000 बताया। नगर पालिका चंबा में कूड़े उठान वाली गाड़ी में मुकेश आर्य बतौर सहायक का काम करता है। सरकार आए दिन अटल आयुष्मान से लाभान्वित होने का जिक्र कर बड़े-बड़े विज्ञापन तो छापती है मगर उसके पीछे की सच्चाई क्योंं नहीं जानती। अब जो व्यक्ति मुफलिसी में जीवन यापन कर अपना भरण पोषण कर रहा हो उस पर रुपये 40000 की भारी भरकम का बोझ डालना क्या ज्यादती नहीं होगी। अब सवाल सरकार की कार्य प्रणाली को लेकर है कि अगर ये प्राईवेट अस्पताल सरकारी पोर्टल पर अटल आयुष्मान के दायरे में है तो इसने मरीज से ये पूछने की जहमत क्यों नहीं की, कि मरीज के पास अटल आयुष्मान कार्ड है या नहीं और अगर ये पैनल में नहीं है तो सरकारी पोर्टल में इसका नाम दर्ज कर अभी तक क्यों आमजन को गुमराह किया जा रहा है। इस वाकये से ऐसा प्रतीत होता है जैसे मानवता खत्म हो चुकी हो। अगर सरकार स्वास्थ्य सेवाओं केे प्रति गंभीर होती तो लोग आयुष्मान कार्ड का लाभ लेते अब जब नजदीक के किसी अस्पताल को पैनल में रखा ही नहीं होगा तो आमजन को फजीहत तो झेेलनी होगी। किसी भी जिले का मुख्य राहत केंद्र अमूमन उसका जिला चिकित्सालय होता है और जब उसकी कार्य प्रणाली ही लचर हो तो फिर इलाज की उम्मीद करना ही बेमानी होगी। ब्रिस्कस एनजीओ के दिग्विजय सजवाण को जब जानकारी प्राप्त हुई की किसी व्यक्ति को मदद की दरकार है तो वे उस गरीब परिवार की मदद के लिए आगे आते है और गरीब महिला को क्रिश्चियन (मसीही) अस्पताल चंबा से बच्चे की डिलीवरी उपरांत घर छोड़ने की जिम्मेदारी लेते है। लेकिन जब वह मुकेश के साथ उसकी जीवन साथी को डिस्चार्ज करने गए तो स्टाफ नर्स से ही अटल आयुष्मान योजना के बावत जानकारी लेनी चाही तो उन्हें जबाव संतोष जनक न मिलने से धक्का लगा। क्योंकि चंबा स्थित क्रिश्चियन(मसीही) अस्पताल अटल आयुष्मान योजना के अंतर्गत सरकार की बेव पोर्टल में दर्ज है। जब अस्पताल में पूछा जाता है कि क्या अटल आयुष्मान कार्ड यहां चलता है तो जवाब सकारात्मक नहीं मिलता है। दिग्विजय बताते हैं कि अस्पताल में स्टाफ नर्सों का व्यवहार तो बिल्कुल  ही निराशाजनक था फिर उन्होंने अस्पताल के डॉक्टर सेे बिल की कुल राशि 35000 में सेे 10000 की राहत मरीज को दिलवाई मगर बावजूद राहत के भी मुकेश के लिए रुपए 25000 जुटाना भारी पड़ा। क्रिश्चियन (मसीही ) अस्पताल चंबा में ऐसी अव्यवस्था को लेकर जिला पंचायत सदस्य यलमा सजवाण जो कि जिला स्वास्थ्य समिति की सदस्य भी है, ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी टिहरी को पत्र ईमेल कर समस्या से अवगत कराकर निराकरण की मांग की। वहीं अप्रैल माह में भी कुछ इसी तरह का एक वाकया क्रिश्चियन(मसीही) अस्पताल में हुआ जिसका संज्ञान लेेते हुए विधायक टिहरी ने संजीदगी दिखाते हुए एक पत्र मुख्य चिकित्साधिकारी को लिख संज्ञान लेने को कहा। अब सवाल सरकारी स्वास्थ्य मशीनरी का है कि क्यों आमजन का जीवन राम भरोसे छोड़ा हुआ है। क्या सरकार की कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं है। देहरादून में समूूचे प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की माॅनीटरिंग के लिए इतना बड़ा महानिदेशालय बनाया गया हैै पर प्रदेश का आमजन 19 साल बीतने के बाद भी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आज भी बेहाल है। सरकार को चाहिए कि स्वास्थ्य महकमें मेें व्याप्त ऐसी अव्यवस्थाओं पर नकेल कस प्रदेश के आमजन तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाएं ताकि प्रदेश के आमजन को जिला मुख्यालय में ही सभी सुविधाएं मिल सकें खासकर स्त्री-प्रसूूति और बाल रोग एवं सीनियर सिटीजन के मामले में तो बिल्कुल भी न भटकना पड़े। हालांकि आज के परिपेक्ष्य में सभी इस बात से भिज्ञ हैं कि वैश्विक महामारी कोविड-19 की गंंभीरता को देखते हुए जिला चिकित्सालय बौराड़ी नई टिहरी कोरोना वायरस के संक्रमण की रोकथाम के लिए आरक्षित है। पर वहां पर जिन गर्भवती महिलाओं का उपचार चल रहा था उनके लिए तो कोई वैकल्पिक व्यवस्था होनी चाहिए। अब विधायक टिहरी केे सीएमओ टिहरी को भेजे पत्र पर कार्रवाई तो हुई। जिसमें वैकल्पिक व्यवस्था सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र चंबा को ओपीडी के लिए निर्देशित किया है। वहीं सीएमओ टिहरी ने विधायक टिहरी के पत्र का संज्ञान लेते हुए मसीह अस्पताल के डाॅ0 राजेेश सिंह को अप्रैल माह की 19 तारीख को इस आशय में पत्र भेज लिखा कि जनपद में आपका अस्पताल अटल आयुष्मान योजना के अंतर्गत इनपैनल्ड है अतः आपको निर्देशित किया जाता है कि कोविड-19 को देखते हुए गर्भवती महिलाओं की सिजेरियन अटल आयुष्मान योजना के अंतर्गत करना सुनिश्चित करें। अब जब सीएमओ टिहरी पत्र में ये भाषा लिखकर पत्र जारी कर चुका हो तो फिर मसीह चिकित्सालय ने इसकी गंभीरता का खयाल क्यों नहीं रखा? सीएमओ के पत्र की गंंभीरता को नजर-अंदाज कर मसीह चिकित्सालय चंबा गर्भवती महिलाओं को आज भी अटल आयुष्मान योजना का लाभ न देकर उनकी फजीहत ही करवा रहा है। जिसका प्रमाण चंबा प्रखंड के थेलारी गांव के मुकेेेश की पत्नी है। मसीह चिकित्सालय चंबा, टिहरी अपनी इन हरकतों से क्षेेत्रीय विधायक टिहरी के पत्र पर हुई कार्रवाई को भी पलीता लगा रहा है।