आॅनलाइन शिक्षा पर प्रधानाध्यापक संजय कुकसाल की राय

देहरादून। , वैश्विक महामारी कोरोना जिसे सीधे शब्दों में कहें तो वायरस जनित महामारी में लॉकडाउन-पार्ट 2 जो कि 19 दिन यानी 3 मई तक रहेगा। इससे पूर्व केंद्र सरकार सबसे पहला ट्राॅयल 22 मार्च रविवार को एक दिन का कर चुकी थी जिसके सफल परिणाम स्वरूप उसे देशहित में वैश्विक महामारी की गंभीरता को देखते हुए 21 दिन का लॉकडाउन किया गया था। जिससे देश के भविष्य यानी नौनिहालों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ा है। नए शैक्षिक सत्र को दृष्टिगत अब सवाल यह है कि उस खाई को कैसे पाटा जाए जो 40 दिन के अंतराल की भरपाई कर सके उसको शिक्षा के क्षेत्र में ऑनलाइन पढ़ाई का नाम दिया जा रहा है। जबकि अभी राज्य में बोर्ड परीक्षाएं शेष हैं। लाॅक डाउन होने तक कई विद्यालय के परीक्षा परिणाम भी नहीं आए थे। नए शिक्षा सत्र की बात बहुत दूर की है। अब सवाल उससे बड़ा यह है कि क्या ये पढाई कारगर सिद्ध हो सकती है?  भारत, जहां अभी भी आधा गाँव बसता हो। वहां पर इसके परिणाम जाने बगैर आॅनलाइन का खयाल करना भी बेमानी होगी। मोबाइल क्यों न आज आम आदमी की पहुंच तक हो पर जरुरी नहीं कि हरेक एंड्रॉयड फोन ही इस्तेमाल करता हो। नेटवर्क जैसी समस्या आज भी आम है। रही बात निजी स्कूलों की तो उनकी कितनी मंहगी फीस क्यों न हो एक हौव्वा जो उन्होंने आधुनिकीकरण के युग में शिक्षा को लेकर बनाया होता है उस पर हरेक अभिभावकों का आकर्षित होना लाजिमी है। रही बात फीस की तो उसके लिए अभिभावकों को क्यों न दिन-रात एक करना पड़े लेकिन वक्त की मांग और बाल्यों को अच्छी शिक्षा के आगे वे भी खुद को सरेंडर कर देते हैं। लॉकडाउन के बावजूद भी निजी स्कूलों की तीन या दो माह की फीस जमा कराने के मैसेज अभिभावकों के माथे पर बल डालता है। अब जब पढाई का अ ब स भी न पढा हो तो कैसी फीस लेकिन निजी स्कूूूल जो हैं वे अपने स्टाफ के वेतन का हवाला देते हुए कहते हैं कि फीस से उनके खर्चे निकलते हैं। अब शासन-प्रशासन को ऐसे समय मेें जब देेश वायरस जनित महामारी जो कि भारत ही नहीं अपितु वैश्विक स्तर पर फैली हो का संज्ञान लेना तो बनता ही है। लेकिन सरकार भी अब इसका विकल्प आॅनलाइन पढाई के रुप में देखती है। जब सरकार ही आॅनलाइन को हरी झंडी दे दे तब निजी स्कूलों के आगे अभिभावक भी बौने साबित होते हैैं। अब आॅन लाईन की सत्यता क्या है कुछ कहा नहीं जा सकता है। आॅन लाईन शिक्षा पर जनपद उत्तरकाशी के चिन्याली सौड़ ब्लॉक के राजकीय आदर्श प्राथमिक विद्यालय बड़ेथी के प्रधानाध्यापक संजय कुकसाल क्या सोचते हैं उनकी फेस बुक पर डाली पोस्ट अपने आप में बहुत कुछ कहती है। वाकई में एक गुरु से बेहत्तर शायद ही कोई इस बात को समझ सकता है। उनकी व्यापक सोच ही है कि उन्होंने एक शिक्षक होने के नाते अपने लंबे अनुभव के आधार पर अपनेे विचार साझा किए। वे कहते हैं कुछ दिवसों से ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर बहुत चर्चा हो रही है। अखबारों के प्रथम या द्वितीय पृष्ठ पर बहुत से अध्यापक मित्र अपनी ऑनलाइन पढ़ाई के ज्ञान का बखान कर रहें हैं। कुछ व्हॉट्सएप समूह, एन0जी0ओ0 भी उनके पक्ष में अपना तर्क रख रहें हैं और उन सब ने अपने तर्क से शासन को भी अपने पक्ष ले लिया है कि उत्तरखण्ड में ऑनलाइन पढ़ाई प्रारम्भ होनी चाहिए। शासन ने भी धरातल की सच्चाई को जाने बिना इसका आदेश निर्गत कर दिया। वे कहते हैं कि एक शिक्षक होने के नाते वे भी थोड़ा बहुत शैक्षणिक अनुभव रखते है नए शैक्षणिक सत्र के लिए वे खुद ही चिंतित हैैं क्योंकि उनकी सुबह की पहली चाय 8 बजे बड़ेथी में कैंतुरा जी की दुकान पर होती है , 8.15 से वे विद्यार्थियों के साथ शौचालय की सफाई, कमरों की सफाई, किचन में पानी भरने एवं अन्य कार्य से करते थे। ठीक 9.15 बजे सभी प्रार्थना के लिए पंक्तिबद्ध हो जाते थे, दिन भर के 6 घण्टों में ही अध्यापक ही विद्यार्थियों के माता-पिता, गुरु एवं दोस्त सब होते हैं, उन बच्चों से दूर रहने का दर्द शायद उनसे ज्यादा और कौन समझ सकता है। एक अध्यापक होने के नाते वे हमेशा नवाचारी सोच रखते हैं पर अभी तक ऑनलाइन पढ़ाई उनके भी गले नहीं उतर रही है, वे कहते हैं जिस गरीब के घर में इस कोरोना महामारी में दो जून की रोटी चिंता सता रही हो भला वह कैसे ऑनलाइन पढ़ाई की सोच पाएंगे। सरकारी विद्यालयों में अधिकांश बच्चे साधन संपन्नता के अभाव में पढ़ते हैं जो काफी गरीब घर के होते हैं उनके पास एंड्रॉयड फोन समझ से परे की बात होती है। माना कि इस आईटी युग की चकाचौंध में भी कोई इसका इस्तेमाल करता हो तो वह भी 20 या 25 प्रतिशत अभिभावक ही होंगे। बाकि 75 प्रतिशत बच्चों की सुध कौन लेगा? क्या उन्हें शिक्षा पाने का अधिकार नही हैं ? अगर सच में हमारा तंत्र अपने कर्म के प्रति इतना वफादार है तो इस दौर में भी इन बच्चों के लिए विद्यालय खुलने पर एक कार्य योजना बनाई जा सकती हैं कि अगर विद्यालय में 1 बजे बाद अवकाश होता है तो आप इसके बाद इनके लिए अतिरिक्त 2 घण्टे का समय देकर अपना कर्तव्य को बहुत अच्छी तरह से निभा सकते हैं। बशर्ते आपकी सोच अपने कर्तव्यों का अच्छे से निर्वहन करे। एक बात उनकी भी समझ में नहीं आई जब 3 मई तक विद्यालय बन्द हैं तो अध्यापकों के पास सभी अभिभावकों के नम्बर कहां से आएंगे। विद्यालय में तो सभी के पास अभिभावकों के मोबाइल नम्बर सुरक्षित हैं पर वर्तमान में फोन नंबर में कुछ ही अविभावकों के पास ही होंगे। ऑनलाइन समर्थक अध्यापकों से वे करबद्ध निवेदन करते हुए कहते हैं कि इस संकट की घड़ी में विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों का मनोबल बढाने की जरुरत है ना कि उनकी गरीबी का उपहास उड़ाने की। अगर वे संसाधनों से इतने संपन्न होते तो वे  भी शिक्षा के क्षेत्र में अच्छे अवसर तलाशते। शिक्षा का अधिकार सभी को है और ऑनलाइन जैसी बेबुनियादी बातें कहकर उनका मनोबल न घटाओ। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि सरकार की पहल अच्छी है लेकिन बिना तैयारी किए हुए कोई भी कार्य सफल नही होता है। ये उनकी व्यक्तिगत सोच है अगर ज्ञान बांटने वाले लोग अपने उत्साह और नवाचारी पुरस्कार पाने के लिए ऑनलाइन का इतना हौव्वा बना रहे हैं , तो वे लोग चिन्ता ना करें पुरस्कार उन  जैसे लोगों को ही मिलता है। धरातल पर काम करने वाले को नहीं। क्योंकि वे इस बात की परवाह किए बिना अपने कर्म करते रहते हैं।' ये वही प्रधानाध्यापक हैं जो अपने नौनिहालों पर बहुत मेहनत करते देखे जा सकते हैं ये निजी विद्यालयों को चुनौती देते हुए नए शैक्षणिक सत्र के लिए जी जान से मेहनत करते हैं। ताकि विद्यार्थियों की तादाद बढे और राजकीय आदर्श प्राथमिक विद्यालय बड़ेथी क्षेत्र में निजी विद्यालयों से अच्छी शिक्षा देने वाला विद्यालय बने। इनका प्रचार प्रसार का तरीका बताता है कि ये अपने विद्यार्थियों पर कितनी मेहनत करते होंगे। बावजूद इसके 'जान है, तो जहान है' लेकिन व्यक्ति को अच्छे दिनों की उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। आपदाएं, महामारियां आती-जाती रहेंगी। ये मानवजाति को बहुत कुछ सिखा कर भी जाती हैं। अध्यापक और विद्यार्थी दोनों को ही इन विषम परिस्थितियों में कैसे खुद को तैयार रहना है ये भी सिखा गई।