एक जन हित याचिका से जगी डोबरा-चांठी पुल की उम्मीद

टिहरी। डोबरा-चांठी झूला पुल ₹ 89.20 करोड़ से शुरु होकर फरवरी 2020 तक तकरीबन ₹ 255 करोड़ लागत तथा मार्च 2020 में 70 लाख लग चुुकी  है और निर्माण कार्य पूरा होने तक एक ऐतिहासिक पुल बनने जा रहा है। ये पुल टिहरी जल विद्युत परियोजना के शुरुआती दौर की याद तरोताजा करवाता है वह भी एशिया का सबसे बड़ी परियोजना तब जिसकी शुरुआती लागत तकरीबन ₹ 200 करोड़ थी बेशक वह भी वक्त केे साथ बदलती रही हो। लेकिन आज बदलते हाईटेक दौर के बावजूद भी डोबरा-चांठी झूला पुल विशालकाय डेम की शुरुवाती लागत सेे भी आगे निकल गया। इस पुल की कवायद साल 2006 से ₹ 89.20 करोड़ शुरु हुई और साल 2020 का फाइनेंशियल मार्च माह की शुरुआत हो चुकी है लेकिन अभी भी पुल निर्माण कार्य अपने अंतिम दौर पर ही चल रहा है। आखिर पुल किसलिए जरुरी है? संक्षिप्त में एक नजर इस पर भी डालें। टिहरी जल विद्युत परियोजना का कार्य जैसे ही शुरु हुआ तो विद्युत उत्पादन के लिए गंगा नदी का जल स्तर दिन-प्रतिदिन बढ़ते चले गया और जब जल का स्तर बढ़ा तो नदी पार समूचा प्रतापनगर क्षेत्र सुगम आवागमन से वंचित हो गया। जैसै मानो शरीर का कोई अंग कटकर अलग हो जाता है ठीक ऐसे ही प्रताप नगर क्षेत्र भी विकास की मुख्यधारा से अलग-थलग पड़, काला पानी की सजा भुगतने लग गया। साल 2006 में पुल के निर्माण कार्य शुभारंभ होते ही क्षेत्र वासियों में उम्मीद की किरण जगी मगर आस पुल के ढंग के डिजाइन न हो पाने से धरी की धरी रह गई। साल 2006 से ₹ 89.20 करोड़ मात्र से शुरु तो हुआ मगर जैसे ही कार्य आरंभ हुआ तो तब पुल का स्पान 532 मीटर था। डोबरा पुल की चौड़ाई 5.50 मीटर (साढ़े पांच मीटर) चांठी साइड से अतिरिक्त स्पान 25 मीटर तथा डोबरा साइड से अतिरिक्त स्पान 260 मीटर या एप्रोच ब्रिज। तत्पश्चात डोबरा पुल का मुख्य स्पान पुल 440 मीटर हो जाता है और दोनों ओर से पुल तक पहुंचने की दूरी 260मी0 +25 मी0 जिसे स्पान में जोड़ कर कुल 725 मीटर बढ़नेे से पुनरीक्षित स्वीकृति कराकर उसकी लागत साल 2008 में ₹128.53 करोड़ हुई। आईआईटी रुड़की के ड्राइंग/डिजाइन के अनुसार निर्माणाधीन परियोजना पर अब तक ₹ 139.80 करोड़ का व्यय हो चुका था। साल 2008 के बाद जब झूला पुल निर्माण कार्य धीमी गति से चला और 05/ 2014 पूर्ण रुप से अवरुद्ध हुवा तो प्रतापनगर क्षेत्र की इस पीड़ा को देखते हुए सामाजिक कार्यकर्ता एवं पूर्व ब्लाॅक प्रमुख खेम सिंह चौहान ने 29 अप्रैल 2014 को नैनीताल हाईकोर्ट में एक जन हित याचिका दायर की। जिसका केस न0 WPPIL-62/2014  है जिसमें वादी खेम सिंह चौहान ने सरकार के पांच महकमों (1) सचिव लोकनिर्माण विभाग उत्तराखंड सरकार सचिवालय, 4 सुभाष रोड़, देहरादून, उत्तराखण्ड (2) मैनेेजिंग डायरेक्टर, टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कारपोरेशन लि०, टिहरी, उत्तराखण्ड (3) डायरेक्टर रिहैबिलिटेशन रिहैबिलिटेशन सचिवालय टिहरी डैम प्रोजेक्ट, टिहरी, उत्तराखंड (4) चीफ इंजीनियर लोक निर्माण विभाग देहरादून (5) चीफ इंजीनियर सिंंचाई विभाग पौड़ी गढ़वाल को परिवादी बनाकर एक जनहित(पीआईएल) याचिका दायर की और जन हित की उस याचिका पर नैैनीताल हाईकोर्ट में 22 अप्रैल 2014 को दायर कर 1 जुलाई 2014 को पहली सुुनवाई हुुुई तदुपरांत 11 व 27अगस्त 2014 तथा  08 व 14 अक्टूबर 2015 तथा 9 दिसंबर 2015 को केस की समय समय पर नियमित सुनवाई होती रही। 22 दिसंबर 2015 को नैनीताल हाईकोर्ट के कोरम में बैठे दो जजों चीफ जस्टिस केएम जोसेफ व जस्टिस वीके बिष्ट की कोर्ट ने प्रताप नगर वासियों राहत देते हुए खेम सिंह चौहान की जन हित याचिका पर एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि 22 दिसंबर 2015 से 19 महीने केे भीतर डोबरा-चांठी झूला पुल तैयार हो जाना चाहिए। उत्तराखंड सरकार नैनीताल हाईकोर्ट की बातें अगर अक्षरशः गंभीरता से लेती तो अब तक झूला पुल का निर्माण कार्य जुलाई 2017 केे मध्य तक पूरा हो जाना चाहिए था। कोर्ट के जगाने से सरकार जागी और फिर से झूला पुल को एक नए शोध और अन्य खर्चों में इजाफा कर अवशेष कार्यों की प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति अंतर्राष्ट्रीय कंसल्टेंट योशिन इंजीनियरिंग कारपोरेशन दक्षिण कोरिया व मै0वीकेएस इंफ्राटेक मैनेजमेंट प्रा0 लि0 नई दिल्ली के संयुक्त उपक्रम द्वारा किये गये डिजाइन एवं विंड टनल टेेस्टिंग के लिए कोरिया भेजा गया। टिहरी झील के ऊपर उस वक्त हवा की गति का हवाला 34 किमी0 प्रति घंटा की रफ्तार लोक निर्माण विभाग ने उपरोक्त कंपनी को दी थी। शासन ने एक शासनादेश-7666/III (2)/15-46(सामान्य/2013 दिनांक 21 अक्टूबर 2015 जारी कर उसकी लागत बढ़कर ₹ 149.945 करोड़ मात्र हुई। उस योजना का अनुबंध संख्या 15/ SE-8/2015-16 दिनांक 25.01.2016 को ठेकेदार PRIL-VKGA-MBZ(JV) चंडीगढ़ के नाम ₹ 135 करोड़ गठित किया गया। अनुबंध गठन के पश्चात योजना का निर्माण कार्य दिनांक 12.03.2016 को आरंभ हुआ था जिसमें कार्य पूर्ण करने की लक्ष्य दिनांक 11.08.2017 भी रखी जरुर गई लेकिन दलील ये दी गई कि टावर रैट्रोफिट कार्य का स्कोप बढ़ने व कम धन आवंटन, चांठी साइड में आरसीसी बाॅक्स कल्वर्ट का अतिरिक्त कार्य, नोटबंदी, कार्य स्थल पर पहुंच मार्ग सेतु के क्षतिग्रस्त होने बार बार विद्युत आपूर्ति में बाधा एवं 2 बजे से 5 बजे तेज हवाओं के बहाव के कारण परियोजना अपने लक्ष्य निर्धारण की तिथि दिनांक 11.08.2017 से बढाकर 31.03.2018 की गई परंतु जुलाई 2017 से पर्याप्त धनावंटन न होने के कारण कार्य की प्रगति में बाधा का हवाला दिया गया। तदुपरांत नाबार्ड-XXIII केे अंतर्गत शासनादेश संख्या-931/III(3)/2017-01(नाबार्ड)/2014 दिनांंक 28.11.2017 से अवशेष ₹ 7497.28 लाख का धनावंटन प्राप्त हुआ। लेकिन कार्य फिर भी तय समय पर पूरा नहीं हुआ फिर अवरोध की एक नई कहानी पुल केे डोबरा की ओर 25 मीटर चांठी की ओर से 20 मीटर लंबाई में इरैक्नशन /लांचिंग का कार्य किया जा चुका था, परन्तु दिनांक 23.08.2018 को चांठी की ओर से इरैक्टेड वायर रोप की साॅकेटिंग स्लिपेज के कारण 06 सस्पेंडर क्षतिग्रस्त होने से पुल की डैक तिरछी हो गई थी उस डैक को अतिरिक्त सस्पेंडर व जैकिंग की सहायता सेे दिनांंक 30.08.2018 की पूर्व स्थिति में लाया गया। मुख्य अभियंता लोनिवि0 टिहरी  के निर्देशानुसार पुल की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए विभागीय कंसल्टेंट, वायर रोप निर्माता ऊषा मार्टिन एवं डिजाइनर द्वारा सितंबर माह में कार्य स्थल का निरीक्षण किया गया तथा कंसल्टेंट की संस्तुति के आधार पर कार्य स्थल एवं ऊषा मार्टिन फैक्ट्री में कुल 48 प्रूफ लोड टेेस्ट एवं 04 ब्रेकिंग लोड टेेस्ट कराये गए टेस्टिंग के परिणामों के परिपेक्ष में कंसल्टेंट की संस्तुति ऊपर सभी इरैक्टेड 891 सस्पेंडरों को उतार कर ऊषा मार्टिन के विशेषज्ञों की देखरेख में परियोजना सलाहकार समिति द्वारा लिए गए निर्णय पर पुनः लगभग 1808 साकेटों को आमजन की सुरक्षा के दृष्टिगत रिसाकेटिंग का कार्य किया गया। 30.11.2018 से कार्य आरंभ हुुआ और 24.04.2019 तक रिसाकेटिंग का कार्य पूरा किया गया। उपरोक्त सभी कार्यों को दिसम्बर 2019 तक पूरा किया जाना बताया गया और मार्च 2020 तक सेतु निर्माण कार्य पूरा कर लोड टेस्ट विद्युतीकरण सहित तमाम पहलुओं को निरीक्षण कर जनता के धैर्य को समर्पित किए जाने की बात कही गई लेकिन अभी आसार नजर नहीं आ रहें हैं। परियोजना को वर्षवार दी गई धनराशि-


वर्ष 2015-16                -  ₹ 6.36 करोड़


वर्ष 2016-17                -  ₹ 56.00 करोड़


वर्ष 2017-18                -  ₹ 38.61करोड़


वर्ष 2018-19                 - ₹ 10.00 करोड़


               कुल               - ₹ 1110.18 करोड़ 


मई 2019 तक कुल वित्तीय प्रगति ₹ 99.945 करोड़ उपरोक्त सभी आंकड़े लोकनिर्माण विभाग के डोबरा-चांठी परियोजना क्रियान्वयन इकाई टिहरी केे तत्कालीन परियोजना प्रबंधक द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के आधार पर हैं। 


अगर चौहान ये कदम उस वक्त पर न उठाते तो तकरीबन दो लाख की आबादी के लिए बनने वाला ये पुल आज भी अधर में होता, कम से कम उनकी एक जनहित याचिका से लंबे और मंहगे सफर से प्रतापनगर की जनता को देर सबेर निजात मिल ही जायेगी और प्रतापनगर ही नहीं अपितु उत्तरकाशी के गाजणा पट्टी तक के क्षेत्रवासियों के लिए अस्थाई राजधानी ही नहीं अपितु देश-दुुनिया तक का सफर तय करने में अब कई किमी0 का फर्क पड़ेगा। इस पुल के निर्माण कार्य के शुरुआती दौर से अब तक न जाने कितने लोग जिंदगी से हाथ धो बैठे। यहां तक कि निर्माण दायी संस्था लोक निर्माण खंड ने भी अपना एक अधिशासी अभियंता तक इस पुल निर्माण में खो दिया। हालांकि तब वह चूक दर्शाती है कि सरकार ने कैसे अनुभव हीन कंपनी को पुल निर्माण का जिम्मा सौंपा था क्योंकि जिस कार्य का सुपरविजन करने तत्कालीन अधिशासी अभियंता शशांक भट्ट पहुंचे थे वे गुप्ता एसोसिएट की खामियों से अपना जीवन गंवां बैठे। ऐसी कंपनी को सरकार ने ठेका दिया जो खुद ब खुद सवाल खड़े करती हो। जिस पुल का निर्माण ₹ 89.20 करोड़ से शुरु हुआ वह कैसे तकरीबन ₹ 255 करोड़ लागत तक पहुंच गया। उसका निर्माण सरकार की नासमझी की वजह से ₹ 255 करोड़ तक पहुंच गया और खामियाजा सरकार को तो उठाना ही पड़ा पर उस जनता का क्या कसूर जो साल 2006 से साल 2020 के लंबे अर्से तक सरकार की नाकामियों का खामियाजा कई किमी0 की लंबी दूरी तय कर उठा रही है। अभी भी तकरीबन अक्टूबर 2020 तक पुल के बनकर तैयार होने की उम्मीद जताई जा सकती है। वो तो भला हो सामाजिक कार्यकर्ता पूर्व ब्लाॅक प्रमुख खेम सिंह चौहान का जिन्होंने पुल निर्माण का कार्य बंद होने पर नैनीताल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की। अब पुल देर-सबेर जनता को मिलेगा जरुर मगर पुल की अड़चनों से लगता नहीं कि पुल लंबी रेस घोड़ा साबित होगा।