रिबन काटने से बढ़कर है आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की महत्ता

देहरादून। प्रदेश में आंगनबाड़ी कार्यकत्री सेविका मिनी कर्मचारी संगठन के बैनर तले आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एक माह से भी ज्यादा वक्त से परेड ग्राउंड स्थित धरना स्थल पर 10सूत्रीय मांगों को लेकर बेमियादी अनशन पर बैठे हुए हैं और सरकार है कि कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है। पिछले कई दिनों से कई कार्यकत्रियों का स्वास्थ्य तक अपनी मांगों के लिए किए जाने वाले बेमियादी अनशन में गिर चुका है। मगर सरकार का रवैया ऐसे प्रतीत होता है मानो इनकी व इनके द्वारा किए जाने वाले कार्य की कोई उपयोगिता न हो। इनके धरने प्रदर्शन को समर्थन देने अब तक न जाने कितने गणमान्य आए मगर उनकी अगवानी से धरने में रत्तीभर की तब्दीली या यूं कहें कि शायद ही कोई आश जगाने वाला कदम उठा हो। हमारे देश की विडंबना कहें या सरकारों की लचर कार्य शैली जिससे ऐसी नौबतें आती हैं कि लोग धरना प्रदर्शन को बाध्य हो जाते हैं। हालांकि पुलिस अपने फर्ज को बखूबी निभा रही है। स्वास्थ्य बिगड़ते देख पुलिस मुस्तैदी से अनशनरत कार्यकर्ताओं को दून अस्पताल ले जाते दिख जाती है जबकि अनशनरत कार्यकर्ता विरोध करते देखे जाते हैं। मगर सरकार संवेदन शून्य नजर आ रही है। सरकार आज बेशक इनको नजरअंदाज कर रही हो लेकिन जैसे ही चुनाव नजदीक आएंगे इन जैसे अनेक उत्तराखंडियो की समस्या पूर्ण करना तब सरकार की बाध्यता बन जाएगी बेफिक्र सरकार परिणाम की परवाह किए बिना आज इन्हें नजरांदाज किए हुए है। प्रदेश में सरकार किसी की भी हो सकता है रिबन काटने और उद्घाटन समारोह तक ही सीमित इनकी दिनचर्या रह जाती है। आखिर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने ऐसी कौन सी गैर वाजिब मांग कर दी जिससे सरकार बेपरवाह है। एक तरफ सरकारें मातृ शक्ति के सम्मान की बात करती है और दूसरी ओर उनसे ही बेपरवाह बने हुए है सरकार को इन कार्यकत्रियों की वाजिब मांगो को सुना जाना  चाहिए और अतार्किक मांगों का समय रहते निस्तारण कर देना चाहिए। उत्तराखंड कब तक ऐसे हड़ताली प्रदेश का तमगा लटकाए रखेगा?