उम्मीदों की 'इगास' बग्वाल

देहरादून।, क्या सरकार अपनी ही बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष की बातों को महत्व देगी या नहीं? 
बात जब अपनी संस्कृति की हो तो भला कैसे कोई तरजीह न दे, उस पर भी जब हम अपनी लोक परंपराओं को जीवित रखने वाले लोक पर्व 'इगास' की बात करते हैं तो लोक मान्यताओं का ये पर्व दीपावली के ग्यारह दिन बाद आता है जिसे उत्तराखंडी ठीक दीपावली की तर्ज पर ही बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं बात लोक मान्यताओं के इस पर्व पर अवकाश की हो रही है तो जब हमारी सरकार विभिन्न भाषी लोक पर्व पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा कर सकती है तो फिर बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष उषा नेगी का पत्र जो मुख्यमंत्री के नाम प्रेषित हैै, की सत्यता सोशल मीडिया में है तो इस पर गौर क्यों नहीं फरमाना चाहिए। वह भी तब जब हम अपने प्रदेश के लोक पर्व को बढ़ावा देने की बात कर रहे हों। हमें सबसे पहले राज्यसभा के सांसद अनिल बलूनी की पहल और उसके साथ अवकाश को लेकर उषा नेगी जी की पहल का स्वागत करना चाहिए क्योंकि ये अपनी संस्कृति को जीवित रखने की पहल कर रहें हैं जो कि स्वागत योग्य है। अब सरकार इस पर कितना गौर फरमाती है ये सरकार के विवेक पर निर्भर करता है।