भाजपा और शिवसेना ने गठबंधन धर्म का निर्वहन करते हुए महाराष्ट्र विधानसभा में सीटों के बंटवारे की आम सहमति के साथ लड़े थे। लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव परिणाम दोनों के लिए आशाजनक नहीं रहे। जिस कारण दोनों ही गफलत में हैं और एक दूसरे पर हावी हो रहे हैं। भाजपा केन्द्र की वजह से नंबर गेम में बड़ी पार्टी का तमगा हासिल किए हुए है वहीं शिवसेना गटबंधन की वजह दूसरे पायदान पर है शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे नतीजे आने के बाद खुलकर फ्रंट फुट पर आकर आक्रमक तेवर दिखाने शुरु कर दिए हैं। उन्होंने आनन-फानन में प्रेस के सामने भाजपा को उनसे किए 50-50 के वायदे की याद तरोताजा करवा दी। उद्धव ठाकरे ने लोकसभा चुनाव में उनसे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ 50-50 फार्मूले पर किए गए वायदे की याद दिलवाई। लेकिन भाजपा गठबंधन साथी की इस तरह किसी भी शर्त नाखुश है और उनसे बात किये बगैर राज्यपाल से मिलकर में नए राजनीतिक समीकरण तलाश रहें है। अब सवाल अहम है कि जिस राज्य में हाल ही में चुनाव हुए हों और परिणाम भाजपा शिवसेना गठबंधन होते हुए भी आशानुकूल न आये हों, के लिए क्या राष्ट्रपति शासन हितकर है। यहां सारी नूराकुश्ती सत्ता के केन्द्र में बने रहने को लेकर हो रही है। तब चाहे भाजपा हो या शिवसेना, क्योंकि दोनों ने जब चुनाव ही गठबंधन के साथ लड़ा तो महाराष्ट्र की जनता को क्यों गफलत में डाला जा रहा है। कांग्रेस एनसीपी गठबंधन तो विपक्ष में बैठने को तैयार हैं। क्योंकि उन्हें जनादेश ही नहीं मिला। शिवसेना में लगातार चार बार से विधायक व पूर्व की सरकार में मंत्री रहे एकनाथ सिंदे को विधायक दल के नेता चुना गया है। वहीं ठाकरे परिवार में पहली दफा आदित्य ठाकरे ने चुनाव में हिस्सेदारी कर विधानसभा तक का सफर तय किया है। शिवसेना उन्हीं को मुख्यमंत्री के लिए भाजपा पर दबाव बनाए हुए हैं। जबकि भाजपा फडनवीस के नेतृत्व में दूसरा कार्यकाल शुरू करने का मन बना चुकी है। लेकिन दिक्कत यह है झुकने को दोनों ओर से कोई भी तैयार नहीं है। अब ये महाराष्ट्र की जनता के साथ छलावा नहीं तो क्या है?
फार्मूले पर एकराय न होने से तकरार