देहरादून। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में भाजपा, कांग्रेस ने जिला पंचायत अध्यक्ष की पुख्ता दावेदारी के मद्देनजर पार्टी समर्थित मजबूत प्रत्याशी चुनावी रण भूमि में उतारे थे। इसी को देख सरकार ने सीटों पर आरक्षण भी तय किया था जिनमे दो सीट पर भाजपा अधिक मजबूत स्थिति में नजर आ रही है पहली सीट देहरादून जनपद के कचटा जिला पंचायत से निर्वाचित सदस्य मधु चौहान जो कि भाजपा के तेजतर्रार विधायक व जनाधारी नेता मुन्ना सिंह चौहान की धर्म पत्नी के साथ ही देहरादून की पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष भी रह चुकी हैं जो उनकी मजबूत स्थिति को बताने के लिए काफी है। देहरादून की 30 जिला पंचायत सीटों पर चुनाव हुए और भाजपा 13 सीट पर व कांग्रेस 7 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। जबकि अन्य पर निर्दलीय काबिज है ऐसी स्थिति में कौन किसके साथ जाता है या निर्दलीय ही बाजी मार जाता है स्थिति कुछ भी साफ नहीं हैं ऐसी परिस्थितियों में अमूमन बाहर कम और सरकार के पक्ष में ही स्थिति बनते देखी गई है। दूसरी सबसे मजबूत प्रत्याशी के रुप में टिहरी जनपद से पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष सोना सजवाण जो कि भाजपा की देवप्रयाग विधानसभा के युवा विधायक विनोद कंडारी की बड़ी बहिन है और भिलंगना ब्लॉक के अखोड़ी जिला पंचायत सीट से निर्विरोध निर्वाचित हुई वहीं इसी ब्लॉक की हडियाणा जिला पंचायत सीट से भाजपा समर्थित सोना सजवाण के पति रघुवीर सजवाण भी निर्विरोध सदस्य बने हैं। जो कि उनके क्षेत्रीय जनाधार को बताने के लिए काफी है। टिहरी जिला पंचायत से भाजपा 17 समर्थित प्रत्याशियों की बढ़त बनाए हुई है जहां कांग्रेस के 4 और निर्दलीय 11सदस्य के रुप में मजबूत जरुर हैं पर किसी ना किसी विचार धारा से उनका जुड़ना भी तय है। देहरादून, टिहरी के साथ ही दो अन्य जनपदों में मजबूत जनाधार को देखते हुए पार्टी ने नैनीताल और ऊधमसिंह नगर से भी (भाजपा ने)अधिकृत प्रत्याशी मैदान में उतारें हैं। अब देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा पूरे प्रदेश में कैसे अपनी सरकार के विकास कार्यों की छाप छोड़ पाती है जबकि कही जिला पंचायत पर कांग्रेस भी काबिज होने जा रही है और निर्दलीय भी कहीं से खुद को कमतर नहीं आंक रहें हैं इस बार कई जिलों में वे भी अपना स्थान बनाने में कामयाब होंगे लेकिन छोटी सरकार बनाने में एक ही सवाल खड़ा होता है कि प्रदेश में भाजपा की सरकार होने के बावजूद क्यों सीमित जिलों तक भाजपा सिमट कर रह गई जबकि प्रदेश में 'जीरो टॉलरेंस' की सरकार है और संदेश भी कुछ ऐसा ही दिया जा रहा कि 'ना खांएंगे, ना खाने देंगे।' इतनी बड़ी उपलब्धि के बाद भी परिणाम भाजपा के पक्ष में पूर्ण रूपेण ना आना कहीं ना कहीं सवाल छोड़ जाता है कि आखिर कमी कहाँ रह जाती है सरकार के कार्य करने के तौर तरीकों में या कार्यकर्ताओं के जमीन स्तर पर सरकार के कार्यों को सही ढंग से कार्यान्वित ना करने में। छोटी सरकार आगामी चुनावों में क्या असर डालते हैं ये नव निर्वाचित सदस्यों के जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुखों की स्थिति साफ होने पर पता चल पाएगा।
छोटी सरकार बड़ा प्रभाव